खुश रहने की यूँ आदत डाल लीजिये जनाब,
जीवन के हर पल को मुस्करा के जी सके|
आये कोई मुश्किल सी घड़ी जब सामने जनाब,
उसके भी गले लग के होंसलों से बढ़ सके ||
-रजत
-
क्यूँ ख्यालों के धागो की गांठ मन में ही बाँध बैठे हो,
पन्नों में उतार दो सारे एहसास जो दिल में छुपाये बैठे हो|
-रजत
-
मुस्कुराहट होठों पर लिए, हर बड़ी मुश्किल को हराना है,
पूरा आसमां है अपना, ख़्वाबों के पँखों को फैलाना है|
जीवन की अँधेरी घटा में, उजली किरणों को सजाना है,
जो सोचा है उम्मीदो में, उसे मुकम्मल सच बनाना है||
-रजत
-
ख्वाइशों को तुम अपने होंसलों से बुलंद रखो,
सपनों को यूहीं अपनी आँखों मे सजाये रखो,
कौन कहता मंज़िले मुश्किल है पानी जहां में,
बस शिद्दत से रास्तो पर पाँव जमाये रखो|
-रजत
-
"बाल मजदूरी"
जिन नन्ही आँखों में सपनों को बसना था,
उनमें ज़माने ने आँसुओ का बोझ सजा दिया|
जिन नाजुक हाथो से कलम को पकड़ना था,
उनमें ज़माने ने मजदूरी का पत्थर थमा दिया||
दौलत की खातिर शायद महंगा कुछ बेचना था,
तभी ज़माने ने बसी मासूमियत को दबा दिया|
गरीबी में पैदा होना शायद एक गुनाह था ,
तभी ज़माने ने प्यारा वो बचपन जला दिया||😢
-रजत
-
"इंसान क्यूँ इतना उदास तू"
फिजा में आज फिक्र का, अजब एक शोर है,
मौजूद यूँ यहाँ सभी, मन खोया कहीं और है |
कोई हैरान महामारी से, छाया डर का जोर है,
कोई परेशान महंगाई से,जेब हल्की चहुँ ओर है||
किसी की नौकरी छीनी, गहन चिंता का दौर है,
कहीं अपनों की कमी, छाया जो अकेलापन घोर है |
अंधेरा हर ओर मगर, थामनी उजाले की डोर है,
बहुत रह लिए उदास, उमंग जगाना अब पुरजोर है ||
खुश रहे ओर रखे, क्यूँ रहना एक कोर है,
याद रखे सदा यही, अँधेरे बाद आती भोर है |
- रजत
-
ख्वाब इन आँखों तले आज जरा गुरूर में है,
जो होंसले उन्हें पाने को बड़े जोर में है|
तबियत से गर चाहो तो मिलता है वो खुदा,
यही सोच हसरतें अब अपने पूरे सुरूर में है||
-रजत
-
"उगता सूरज उम्मीद जगाता है "
उगता हुआ सूरज एक नयी उम्मीद जगाता है,
अँधेरे को कर दूर उजाले को फैलाता है|
किरणों में लिए तपिश ये सबको उठाता है,
नयी शुरुआत का होंसला मन में बंधाता है||
जो बीत गया सो बात गयी समझाता है,
जूनून से लक्ष्य हासिल करने को उकसाता है|
तेज से अपने दूसरों का जीवन पनपाता है,
खुद की सोच से उठकर जीना सिखलाता है||
-रजत
-
ये ज़िन्दगी मुझे हर पल हैरान करती है,
सीधे रास्तो में अजब मोड़ फरमान करती है |
कभी खुशियों की घड़ी में गम आह्वान करती है,
तो कभी ढेह चुकी उम्मीदों को मचान करती है||
-रजत
-
" पर्यावरण है जीवन"
जिस प्रकृति ने हमें परवरिश दी,
कोसो दूर उसी से हम आज है |
जिस तरु ने हमें ठंडी छाँव दी,
गर्म आज उसी तने की राख है ||
जिस मिट्टी ने ताउम्र हमें बरकत दी,
उसी की ज़मीन हुई बंजर आज है |
लेहराते हुए जिन पत्तों ने शीतलहर दी
मुरझा रहे उनके रंग रूप आज है ||
जिन वृक्षों ने साँसो की रेहमत दी,
नन्हे पौधे बोकर उन्हें बढ़ाना आज है |
मौसम चक्र को सदियों जिसने पनाह दी
उस पर्यावरण को फिर सजाना आज है ||
- रजत
-