"इंसान क्यूँ इतना उदास तू"
फिजा में आज फिक्र का, अजब एक शोर है,
मौजूद यूँ यहाँ सभी, मन खोया कहीं और है |
कोई हैरान महामारी से, छाया डर का जोर है,
कोई परेशान महंगाई से,जेब हल्की चहुँ ओर है||
किसी की नौकरी छीनी, गहन चिंता का दौर है,
कहीं अपनों की कमी, छाया जो अकेलापन घोर है |
अंधेरा हर ओर मगर, थामनी उजाले की डोर है,
बहुत रह लिए उदास, उमंग जगाना अब पुरजोर है ||
खुश रहे ओर रखे, क्यूँ रहना एक कोर है,
याद रखे सदा यही, अँधेरे बाद आती भोर है |
- रजत
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