ये गुलाब भी कितना नादान हैख़ामोशी से बिछड़ जाता है अपनों से अपनों के लिए ।। - रजत जैन
ये गुलाब भी कितना नादान हैख़ामोशी से बिछड़ जाता है अपनों से अपनों के लिए ।।
- रजत जैन