25 DEC 2019 AT 22:08

स्वावलोकन

घनघोर निराशा हो मन में,
उत्साह न हो जब जीवन में।
थक गया हो अंतस क्रंदन से,
या स्वेद रुक गए स्यंदन से।
उस क्षण रुक जाना गंभीर होकर।
सोचो क्या थे, क्या हो गए तुम?
ओ वीर कहां पर खो गए तुम!

सब बंधु बांधव छूटे हों,
अपनों से रिश्ते टूटे हों।
निकले सब वादे झूठे हों,
अश्रु छुप छुप कर फूटे हों।
उस क्षण रुक जाना सहजता से,
सोचना कहां कुछ चूक हुई।
अपनों से दूर क्यों हो गए तुम?
ऐ यार कहां पर खो गए तुम!

प्रियसी भी तुमसे रूठ पड़े।
सारी बातें जब छूट पड़ें।
मन की आशाएं टूट पड़ें।
मुख से रुदन भी फूट पड़ें।
उस क्षण रुक जाना स्निग्ध होकर।
सोचो क्यों प्रेम तजा तुमने?
ओ प्रेमी कहां पर खो गए तुम!

- ©रजत द्विवेदी