घर का कोना।
मेरे लिए घर का एक कोना चाहिए,
जहां मैं जी भर कर रो लूं या,
खुश होने पर खिलखिलाऊं,
अपने मन की बातें करूं या,
कुछ बातों को दिल में दबा जाऊं,
मेरे लिए घर का एक कोना चाहिए।
जहां मैं अपने आप से मिलूं,
और सबसे दूर हो खुद को पहचानू
अपने मन का मालिक बन,
उस हिस्से को अपने सा बना लूं,
मेरे लिए घर का एक कोना चाहिए।
जहां मैं सुकून के पल गुजारूं या,
उलझनों को प्यार से सुलझा लूं,
कुछ अख़बार के पन्ने पलटते हुए,
अपने अतीत के गलियों में झांकू,
मेरे लिए घर का एक कोना चाहिए।
रजनी श्रीवास्तव।
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अगर थोड़ी आंख ना खुली होती तो,
लोग सरेआम बाजार में बेंच देते।-
तुम में और मुझमें बस फ़र्क है इतना,
तुम कब्र में लेटे, मैं कब्र के बाहर हुं।
मिलके जब मैं तुमसे आई,
दिखे तुम मेरी परछाई,
नियति के चक्की में दोनों पीसे,
तुम चैन की नींद में सो चुके,
मैं बेचैन दुनियां में भटक रही,
तुम में और मुझमें बस फ़र्क है इतना,
तुम कब्र में लेटे, मैं कब्र से बाहर हुं।
छोड़ जग की सारी बातें,
सच के साथ तुम जुड़ गए,
मैं भी निकली हुं तेरी डगर,
सबसे नाता तोड़ के,
तेरी सांसे रुक गई पर,
मेरी सांस अभी बाकी है,
तुम में और मुझमें बस फ़र्क है इतना,
तुम कब्र में लेटे, मैं कब्र से बाहर हुं।
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अच्छा होता कत्ल कर देते,
अच्छा होता कत्ल कर देते,
यूं तड़पना नहीं होता,
जान एक बार में चली जाती.-
तुम सही कहते हो, मुझमें ही कमी है।
बार - बार अपमानित होकर भी,
दहलीज मैंने न छोड़ी है,
झुक - झुक कर अपाहिज़ बनी,
फिर भी रिश्ते में बंधी हूं,
तुम सही कहते हो, मुझमें ही कमी है।
बार - बार तलाक शब्द,
मेरे वजूद का पहचान कराया,
मेरा कोई घर नहीं,
तभी तुमने मुझे भगाया,
तुम सही कहते हो, मुझमें ही कमी है।
सम्मान की बात तुम्हे याद है तो,
मेरे सम्मान का चीता क्यों जलाया,
अपमान का घूंट हर बार पीकर,
इस रिश्ते को मैंने बचाया,
तुम सही कहते हो, मुझमें ही कमी है।
यह जो कमी है मुझमें,
यही नियति थी तब - जब,
ईश्वर ने लड़की बनाया,
कमी शब्द का ठप्पा लगाया,
मुझमें ही कमी है क्योंकि,
मैं एक लड़की हूं,
तुम सही कहते हो,मुझमें ही कमी है,
तुम सही कहते हो,मुझमें ही कमी है।
रजनी श्रीवास्तव।
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लोग मुझमें कमियां निकालते रहे,
और मैं आईने के सामने खड़ी होकर कमी ढूंढती रही,
दोष उनका भी नहीं था, मैं ही उनके नज़र को नहीं पढ़ सकी, कमी तो उनके नज़रों में थी।😊🙏-
कत्ल हमसे हुआ नहीं पर इल्ज़ाम बहुत है,
कत्ल हमसे हुआ नहीं पर इल्ज़ाम बहुत है,
अरे दिल तोड़ने वालों में नाम बहुत है।-
पैसे का व्यापार तो सब कर रहे हैं,
अजी हम तो इंसानियत बांटने निकले हैं।-
लिखने के लिए तो दिल चाहिए,
जज़्बात तो ख़ुद ही निकलकर आ जाते हैं।-
कुछ गैर अपनों से बढ़कर हैं,
हर रोज़ हाल चाल पूछ लेते हैं,
तन्हा चलूं तो संग चल देते हैं,
रोता देख ख़ुद भी रो देते हैं,
कुछ गैर अपनों से बढ़कर हैं।
न उनसे उम्मीद थी मुझे,
पर वो उम्मीद बंधा देते हैं,
तू काबिल है यह शब्द बोलकर,
हौसला का पंख बना देते हैं,
कुछ गैर अपनों से बढ़कर हैं।
माना वो जो अपने थे,
सोच वो बस सपने थे,
वक्त की मार ने सब दिखा दिया,
हर एक मुखौटा उतार दिया,
पर कुछ गैर उन अपनों से लाख बेहतर हैं।-