कहीं भी रहूं दुआ बनकर हमेशा साथ रहती है.
कभी दुनिया के मेले में मुझे खोने नहीं देती हैं!!
जवां बेटे ने बुढ़ा कर दिया है वक्त से पहले.
मगर एक मां है जो मुझे बड़ा नहीं होने देती!!-
देख तुझे किसी गेर के साथ तुझसे प्यार,
का इजहार करते-करते चुप रह गया।
तेरे इश्क में किसी आशिक का सडक,
पर तमाशा बन कर रह गया।
सब कुछ जान कर भी वह इन्सान,
अनजान बन कर यु चला गया।
कि कमबख्त यह जमाना उसकी मोहब्बत,
को पागलपन कह कर हंसता रह गया।-
माना बदला-बदला सा है मिजाज मेरा अब मैं बस ख़ुद के सवालों में उलझा-उलझा सा रहता हूं
तुम बात करती हो मुझसे मोहब्बत की मै इसी मोहब्बत में रोज नऐ आशिकों को बर्बाद होते देखता हूं-
मेहफिल में साथ बैठे कुछ दोस्त अपनी-अपनी
मोहब्बतो के किस्से सुना रहे थे
और जब बारी आई हमारी तो हम हाथ
में लिए जाम बस मुस्कुरा रहे थे-
जो औरत अपने पति को अनपढ़,
कह कर छोड़ जाती हैं...
दरअसल आज भी उसकी तनख्वाह,,
देख कर मां खुश हो जाती हैं..!-
अपनी हर तकलीफों को छुपाकर मेरे सामने जो मुस्कुराती है.
खुद को भुखा रख कर जिसको मेरे खाने कि चिंता सताती हैं!
जो त्याग कर अपने सारे सपने मेरे भविष्य कि कामना करतीं हैं.
जिसके प्यार में कोई शर्त नहीं ऐसा प्यार बस मेरी मां करतीं हैं.!-
बीते कुछ दिनों से मैं मदीरा की बोतल अकेले खोल रहा
शायद महफ़िल के बीच आज कल मैं सच बोल रहा हूं-
मानों कोई शब्द नहीं एक रस्म हो जो
जीवन के साथ जुड़ गई ये असफलता हमारी
करले तुझे जो करना हैं ऐ जिंदगी कामयाबी हासिल करेंगे एक दिन अभी उम्र थोड़ी खत्म हुई हैं हमारी-
तुम पर लिखा वो गीत सुनाऊं कैसे,
दर्द गम-ऐ-जुदाई का छुपाऊं कैसे .!
घर वालों ने वजह पुछा मेरे नशा करने का,
अब उन लोगों को नाम तुम्हारा बताऊं कैसे ..!
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दस्ता-ऐ-मोहब्बत
अध्याय-3
हुआ कुछ यूं था कि हमको
उनसे मोहब्बत बेपनाह थी
लेकिन इश्क-ऐ-दस्ता से
हम कम्बक्त बेपरवाह थे
ना सोचा था जो बात वो
बात हमको कह जाएगी
कसुरवार ख़ुद होकर जिम्मेदार
इस ज़माने को बताएगी
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