Kind of introvert who is so reserve to hold a conversation with anyone on call.
And if by chance its the time to call someone then first get ready with the list of excuses to end the call, before calling itself.-
👉वास्तविकता से जो जुड़ी वो बात लिखता हूँ
👉अनुभवों ... read more
Who loves you and who supports you is really not difficult to figure out. It doesn't matter if someone is establishing the same connection with you when they are alone, as what you hold with them.
Its interesting to see if the same person does even count on you or not, when they are with a bunch of peeps to get entertained with or has got someone to keep moving....
Thats when you realise how deserted you are. Because people who consider you as the integral part in their life, they will include you in all their sufferings and joys, hardly matters whom they are with. But if you are being neglected in those scenarios then you are completely in the wrong company to be honest...-
आप तभी तक ज़रूरी हैं, जब तक आपकी ज़रूरत है।
जिस दिन ज़रूरत ख़त्म, उस दिन आपकी कोई अहमियत नहीं रह जाएगी।-
ज़िंदगी के सफ़र में मौत ही ठिकाना है।
ख्वाईशों की लौ का ना कोई पैमाना है।
ज़िंदगी है कर्ज़ की,सासों का कर्ज़दार हूँ
मुफ़्त तो हवा भी कहाँ जनाब,
कि हर पाई पाई का हिसाब भी,
ज़िंदगी में ज़िंदगी देकर चुकाना है।-
Love is the most strongest feeling,
Having the potential to overshadow
All the other existing feelings
In the universe.-
किसी शाम के साए में,
अक़्सर बैठ मुस्कुराता हूँ
बीते लम्हों के तरानों को
मन ही मन गुनगुनाता हूँ
कभी चाय की चुस्कियों के बीच
रिश्तों के भंवर में डूब जाता हूँ
धीमी आँच में सुनहरी यादों को
फ़िर मन के तंदूर पर पकाता हूँ-
जो थामा है गर हाथ तुम्हारा तो
रूठने पर मैं ही तुम्हे मनाऊंगा
कुछ तंज़ भरी बातें तुम्हारी होंगी
कुछ शिकवे-गिले मैं भी सुनाऊंगा
यूं ही लड़ते-झगड़ते,कभी हंसते-मुस्कुराते
संग मिलकर, उलझे रिश्तों को सुलझाऊंगा
नैनों के दर्पण में तुम्हारे तड़पन को भांपकर
खामोश लबों के हर अल्फाज़ समझ जाऊंगा
टेढ़े मेढे जिंदगी के रास्तों पर चलकर
तुम्हारे वक्त की मार का मरहम बन जाऊंगा
तुम यारों की दुनियां का दुर्लभ नगीना हो
तुम्हे यारी के ताज पर कैसे ना सजाऊंगा?
विश्वास की बुनियाद पर रिश्तों के मकान में
मैं खट्टे-मीठे पलों का सुनहरा रंग लगाऊंगा
रंजिशों के दरमियां कुछ दूरियां भी आएंगी
मैं वक्त के हर पहर,तुम्हारा साथ निभाऊंगा-
तू ध्रुव तारा चमकता हुआ,
मैं अमावस का हूँ चाँद वही।
एक अंबर के नीचे फिर भी,
हम पास हो कर भी पास नहीं।-
सूखे हुए रेत को बस,
समुंदर का सहारा था।
भागती हुई लहरों की,
मंजिल वो किनारा था।
लहरों का यूं सरपट आना,
मिलकर रुख़सत हो जाना।
मिज़ाज रेत का पूछने आतीं,
पर उन्हें रुकना ना गवारा था।
उम्मीद का एक सिरा थाम,
रेत ने खुद को संवारा था।
एक मुंतजिर में ज़र्रे-ज़र्रे ने,
यूं ही कई अरसा गुज़ारा था।
भ्रम कहूं या था विश्वास रेत का,
उसे तो लहरों से दिल लगाना था।
किंतु लहरों की मंजिल था साहिल,
मिज़ाज पूछना? महज़ बहाना था।-