वो बैठे हैं सावन के इंतज़ार में
हम आग लगा रहें हैं गुलज़ार में
आँखें अजब ये मंजर चाहती हैं
पत्ते झड़े अबके बहार में-
काम है ज्यादा और मेहनताना कम है
किसे बताएँ,कितने मुश्किल में हम है
इस प्राइवेट नौकरी का हाल न पूछो
यहाँ पैसा ही ख़ुशी है और यही गम है
कबसे ख़ून चूसा जा रहा है मजदूरों का
इनके लिए सरकार बस बनाती नियम है
मेरे जेब का वज़न डराता है मुझे,क्योंकि
घर जाना है,त्यौहारों का मौसम है
इस तन्हा शहर में तन्हाई से बचा देती है
इस मुफ़लिस के पास जो कलम है-
कोई इमारत सिर्फ बुनियाद पे ही नहीं खड़ी है
सच ये भी है,ईंटो के दरमियाँ थोड़ी दूरी है-
आज़ादी कैसे मिली है
बच्चों को बताया कीजिए
एक माँ को कभी
सौतेली लगने का डर ना रहे-
समझा मोहब्बत,मोहब्बत से किनारा करके
दिल हैं ख़ामोश,आदत से आवारा करके
आशिक़ों की अब तो फ़ितरत हो गई हैं
चलती हैं जिंदगी,इबादत से गुजारा करके
कहीं मैं खो जाऊँगा,तुझसे जुदा होके यहाँ
तुम मुझे छोड़ना,आसमाँ का सितारा करके-
1.
हर रात हकीकत से पर्दा करके,कई ख़्वाब मन में आतें हैं
फिर सुबह हकीकत से रूबरू होकर,मायूस लौट जातें हैं
मुश्किल हैं हकीकत के जमीं पर ख़्वाब के फूल का खिलना
हकीकत और ख़्वाब में हम इतना ही फर्क समझ पातें हैं
2.
हकीकत की जमीं पर ख़्वाब के फूल का खिलना
कुछ ऐसा मंजर था वो,यूँ तुमसे अचानक मिलना
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तारो को मिला मिला के,मन में
आसमाँ पे,चेहरा तेरा बना लेता हूँ
अपने चाँद की खातिर फिर एक चाँद को
बिंदिया की तरह,माथे पर सजा देता हूँ
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दूर होने के बाद हमसे अदब से पेश आते हैं
सच कहूँ तो पागल तुमपे ये रंग ना भाते हैं
तुम्हारी कहाँ पहचान बचकानी हरकत की
दूसरे की होके थोड़ी ही न ऐसे बदल जाते हैं
तुम दूर चली गयी लेकिन ख्यालो में आके
वो पागल की बाते अब भी हमें जगाते हैं
प्यार के अफ़साने दूर होके भी मुकम्मल होते हैं
दुनिया देख लो,प्यार ऐसे भी किये जाते हैं
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