अभी वक़्त नहीं संवाद का,
समय है अब प्रतिकार का।
लहू का हर क़तरा कहता है,
वक़्त है अब जंग-ए-ऐलान का।
धरती बोले, अम्बर गूंजे,
जय जयकार हो हर तलवार का।
अभी वक़्त नहीं संवाद का,
ये काल है रण-प्रहार का।
शब्दों से नहीं अब काम चलेगा,
उत्तर होगा अब हथियार का।
जो छुप के वार करें पीठ पीछे,
मुक़ाबला हो उनसे हुंकार का।
बोली नहीं, अब गोली बोले,
इंतकाम हो हर वार का।
भारत के बेटे चुप न होंगे,
ये समय है सिंह-पुकार का।
जब रण में तिरंगा लहराए,
गूंज उठे नाद अंगार का।
अभी वक़्त नहीं संवाद का,
खत्म करो इस आतंकवाद का।
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लहराया फिर से परचम, इज़्ज़त बढ़ा दी देश की,
मैदान में वो आग थी, दुश्मन झुका दी देश की।
जब बैट गरजा हाथ में, तो हौसले भी बोल उठे,
हर एक रन में दिख रही थी, शान सादी देश की।
गिरकर संभलते आ गए, आँधियों से खेलते,
ये जांबाज़ी, ये जज़्बा, पहचान गाढ़ी देश की।
गेंदों में थी बिजली, और बल्ले में तूफ़ान था,
हर चाल से सिखा दिया, ताक़त बड़ी देश की।
अब जयघोष गूंजेगा, हर दिल में हिंदुस्तान का,
जीत की ये सौग़ात हमने, फिर से ला दी देश की।-
तेरी यादों का सिलसिला अब भी जारी है,
दिल की गलियों में रौशनी कुछ भारी है।
हमने चाहा था भूल जाएं तुझे मगर,
तेरा चेहरा ही हर तरफ़ क्यों नज़ारी है?
साथ रहकर भी दूरियों का ये आलम था,
तेरी आँखों में क्यों उदासी हमारी है?
अब जो चाहें तो मुस्कुरा भी नहीं सकते,
आँख में अश्क़ हैं, होंठों पे लाचारी है।
जो कभी मेरी ज़िन्दगी का सहारा था,
आज वो शख़्स बन बैठा एक ख़ुमारी है।
बेवफ़ाई का इल्ज़ाम किस पर धरे कोई,
दिल ने चाहा जिसे, उसी ने की ग़द्दारी है।
राह तकते हैं अब भी तेरी वफ़ाओं की,
दिल में उम्मीद की लौ अब भी जारी है।-
जमीं पे हक नहीं, आसमां हमारा क्या,
बना है जाल जुल्मों का, रास्ता हमारा क्या?
जो हाथ थे कलम, अब भी सूने-सूने हैं,
लबों पे खौफ लिखा है, दास्तां हमारा क्या?
हर एक मोड़ पे पहरे, हर एक राह बंद,
गुलामी की हैं जंजीरें, हौसला हमारा क्या?
उजाले छीनकर हमसे, दिया जलाते हो,
जो रोशनी नहीं बाकी, फिर घर हमारा क्या?
हमारी चीख भी तुमको गुनाह लगती है,
अगर है जुर्म जीना, तो जिंदगी हमारा क्या?
अब अपने लहू से हम तकदीर लिखेंगे,
तुम्हारे फैसले झूठे, अदालतें हमारा क्या?
— राज
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ग़ज़ल कह रही, मुझे लिख तो लो,
अल्फ़ाज़ में अपने सजा तो लो।
कभी दर्द का रंग, कभी इश्क़ की लौ,
मेरे हर शेर से दिल लगा तो लो।
कभी अश्क़ बनके छलक जाऊँ,
कभी लफ़्ज़ों में घुलके महक जाऊँ।
जो सुन ले, वो खुद को भूल जाए,
कभी ऐसा असर बनके ढल जाऊँ।
कोई महबूब की बाहों में खोकर लिखे,
कोई तन्हाइयों में सिसक कर लिखे।
मैं हर हाल में ज़िंदा रहती हूँ,
कोई हंस कर लिखे, कोई रोकर लिखे।
कभी मय बनूँ, कभी सज़दा बनूँ,
कभी आग बनूँ, कभी दरिया बनूँ।
जो चाहे, वो रंग दे मुझको "राज",
कभी शोला बनूँ, कभी शबनम बनूँ।
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❤️ ख़्वाबों की दास्तां❤️
हमने एक ख्वाब सजाया है
दहलीज लाँघ मेरे साथ आओगी
जरूरत नहीं की हर बात में हामी भरो
पसन्द न हो तो नाराज़गी जताओगी
ये आईना का मुझे समझ नही आता
देखना है चेहरा ज़रा पास आओगी
हकीकत ये भी है कि फिदा है जमाना तुमपे
बताओ उम्र भर सिर्फ मेरे लिए सवंर पाओगी
सुनो अब तन्हाई रास नहीं आ रही है मुझे
लौट फिरसे मेरे बाहों में सिमट जाओगी
हमने एक ख्वाब सजाया है
दहलीज लाँघ मेरे साथ आओगी-
है नज़र मंजिल पर तो राह को कौन देखें
साथ चलते कई मुसाफिर, हमसफर को कौन देखे
मुश्किलों से मिलतें हैं उम्र भर साथ चलने वाले
किस्मत इतनी अच्छी हो तो मंजिल को कौन देखे
लोग भी देते अहमियत अब अपने हिसाब से
चाँद हो इतनी खूबसूरत तो सूरज को कौन देखे
रोज ढूंढ़ते हैं मरने के नए तरीके
डूबने को है तेरी आँखे तो समंदर को अब कौन देखे
नशे की इस आदत ने क्या-2 नहीं पिलाया मुझे
पीने को हो तेरी होंठें तो मदिरालय को अब कौन देखे
उलझी पड़ी है जिंदगी न जाने कितनी मुसीबतों से
सुलझाने को हो तेरी जुल्फें तो मुश्किलों को कौन देखे
उसके एक ज़िद्द ने हमें कहाँ पहुँचा दिया
पूरे करने हैं कई ख्वाहिश तो ख्वाब अब कौन देखे-
जाओ हम छोड़ते हैं मोहब्बत किस्मत के भरोसे
गर किस्मत में हुई तो मोहब्बत फिर बेसुमार करेंगे— % &-
न जाने लोग कैसे महबूब को गले लगातें होंगे
मुझे तो हाथ मिलाने में डर लगता है-