Rãj Ŕòļļy   (साक्षी प्रिया"नज़्म")
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Joined 1 October 2017


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8 JUL 2020 AT 2:15

मिडिल क्लास

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8 JUL 2020 AT 1:34

कुछ ख्वाहिश अधूरे रह गए
कुछ अधूरे सपने टूट गए
मजबूरियां इतनी बड़ी थीं-
की अपने भी साथ छोड़ गए।

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2 JUL 2020 AT 23:47

हर बार ख़ुद से कसमें खाई उन्हें भुलने की मैंने,
कम्बख़्त भूलते भूलते भी दिल से याद किया मैंने।

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8 JUN 2020 AT 11:53

बरसे तू,
मैं बादल बन जाऊं
बिन मौसम में,
कभी बरसात बन जाऊं
नीले नीले आसमान में
इधर उधर मंडराऊ
जब देखु सुखी धरती
मैं झम झम बरस जाऊं।

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7 JUN 2020 AT 21:17

बारिश के इंतजार में ,
मैंने तारे इतने गिने की मेरी अगुंलिया जल गई।
चाँद से शिकायत क्या की थोड़े ही पल में बादल छा गई।।

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7 JUN 2020 AT 7:43

न सिर्फ किस्से न कोई बात लिखती हूँ
मैं दिल से निकले बस जज्बात लिखती हूँ|

ख्वाहिश ज्यादा बड़े नही है मेरे
बस कुछ ख्वाबो को देखने के लिए रात लिखती हूँ|

हर रात कितने ही अश्क बहाये है
उनकी याद में बस अब बरसात लिखती हूँ|

लोग कुछ पल अपने भी दोष देखे,
इसलिए अब कविताओं में मीर'आत लिखती हूँ|

कह न पाए आज तक जो किसी से,
स्याही से अब वो तफक्कुरात लिखती हूँ|

हर रात के बाद एक ने सुबह आगाज होता है
इसी आशा में रात के बाद फिर प्रभात लिखती हूँ|

कितने ही जख्म अधूरे पड़े हैं 'साक्षी' के,
अमर हो जाए इसलिए सारे आघात लिखती हूँ|

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4 JUN 2020 AT 19:19

नूर उनका तो जैसे हो आफ़ताब कोई।
मुखड़ा उनका जैसे हीरा हो नायाब कोई।

सुर्ख होंठ और जुल्फों का कहर उफ़्फ़
ना देखा था कभी उन सा शबाब कोई

हम ठहरे नाचीज़ क्या ही कहे उन्हें
हुस्न है जैसे महकता हो गुलाब कोई।

आसमान में क़मर शायद वहम में हैं
नभ में है क्या उनसे बढ़कर आफ़ताब कोई।

कितने ही देख कर जान गवां बैठे
फिदा होने वालो का हैं क्या हिसाब कोई।

गुरुर तो जायज है इतना खुद पर
ध्वनि में संगीत है,क्यो चाहिए रबाब कोई।

पढ़ पाना उनकी आंखों में असां नही है नज़्म
शराब सा नशा हैं वो,थोड़ी न किताब कोई।

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4 JUN 2020 AT 12:03

हँसते चेहरे के पीछे,
एक दर्द भरी कहानी हैं
जो आज तक किसी ने ना जानी हैं
हँसती रहती हूँ सबके सामने,
अकेले में रोना मेरी मनमानी हैं।
रोना मेरी कमजोरी नहीं है ,बस
सबके सामने हँसना ये जरूरी हैं।

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2 JUN 2020 AT 23:13

जो सबको हँसाना जानता हैं ,
आखिर में वहीं रोता हैं।
ये पत्थरों की दुनिया हैं ,
कोई किसी का नहीं होता हैं।।

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2 JUN 2020 AT 23:09

सोचा तो था किसी पर एतवार नही करूँगी
पर अचानक से तेरे आने पर जाना मैं बदल सी गई।
पत्थर का बनाना चाह रही थी मैं दिल अपना
पर तेरे मोम जैसे दिल के शाये में मैं पिघल सी गई।।

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