RAJ Rk   (@ansuna_writer)
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Joined 1 April 2021


Joined 1 April 2021
16 AUG 2022 AT 21:01

छुपे हुए रहस्य के छुपे हुए ख़जाने है, गुजरे हुए जमाने थे, आने वाले जमाने है।

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2 MAR 2022 AT 11:28

शिकस्ता मकबरों पे टूटती रातों को इक लड़की
लिए हाथों में बरबत, जोग में कुछ गुनगुनाती है
कहा करते है चरवाहे की जब रुकते है गीत उसके
तो एक ताजा कबर से चीख की आवाज़ आती है

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20 FEB 2022 AT 8:50

अगर तुम कहो तो मैं फूल बन जाऊं,
ज़िंदगी का तुम्हारी एक उसूल बन जाऊं,

सुना है की रेत पर चलने से तुम महक जाते हो,
कहो तो अबके ज़मीन की धूल ही बन जाऊं,

नायाब है वो लोग जिन्हे तुम अपना कहते हो,
इज़ाज़त दो की मैं भी इस क़दर अनमोल बन जाऊं!— % &

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21 OCT 2021 AT 15:13

बड़े लोगोँ से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समंदर में मिला फिर दरिया नहीं रहता

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14 OCT 2021 AT 12:34

भींगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा

फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फो की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा

आँसू को कभी ओस का कतरा न समझना
ऐसा तुम्हें चाहत का समंदर न मिलेगा

इस ख्वाब के माहौल में बेख्वाब है आँखें
जब नींद बहुत आयेगी, बिस्तर न मिलेगा

ये सोच लो अब आखिरी साया है मोहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा

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25 SEP 2021 AT 15:24

वो चांदनी का बदन खुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है

महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है

उसे किसी की मोहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

तमाम उम्र मिरा दम इसी धुएं में घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है

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21 AUG 2021 AT 12:44

बरस भी जाओ कभी बारिशों की रहमत हो
हज़ार दूर रहो तुम मिरी मोहब्बत हो

ज़रा हँसो कि यही धूप फूल बरसाए
तुम्हें ख़बर नहीं तुम कितनी खूबसूरत हो

पूनम का चाँद भी आज तेरे आने से खिल गया
तुम मानो न मानो मेरे घर का रोशन दान तो हो

सफ़र सफ़र है, हमेशा सफ़र में याद रहे
तुम ऐतबार किसी का, किसी की इज़्ज़त हो

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9 AUG 2021 AT 12:34

वो शाख़ है न फूल, अगर तितलियाँ न हों
वो घर भी कोई घर है जहाँ बच्चियाँ न हों

पलकों से आँसुओ की महक आनी चाहिए
ख़ाली है आसमान अगर बदलियाँ न हों

दुश्मन को भी खुदा कभी ऐसा मकाँ न दे
ताजा हवा की जिसमें कहीं खिड़कियाँ न हों

मैं पूछता हूँ मेरी गली में वो आए क्यों
जिस डाकिए के पास तेरी चिट्टियाँ न हों

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7 AUG 2021 AT 13:05

ऐसा नहीं है की जीना छोड़ रहा हूँ में
बस कुछ सासों से नाता तोड़ रहा हूँ में

थक चुका हूँ इस गुमनाम मोहब्बत से
मिल अंगारो के शोलो सा धधक रहा हूँ में

दिल का जज्बा भी अब हार मान बैठा
आँधियों के चलते मोम, धूप जला रहा हूँ में

कुछ देर बाद राख मिलेगी तुम्हें यहाँ
लौ बनके इस चराग़ से लिपट रहा हूँ में

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5 AUG 2021 AT 18:28

जब भी उसकी गली में भ्रमण होता है
उसके द्वार पे आत्मसमर्पण होता है❤

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