एक तरफ रहे सारे सुहाने शहरों के नाम,
दूसरी तरफ रहे तुम्हारी हँसी और मात शहरों की हो।-
और उसने मुझे।
दबी दबी सी सारी ख्वाहिशें,
एक बोझ के तले दबकर,
जैसे गिन रही हो अपनी आखरी साँसें,
गिनते गिनते जैसे भूल रही हो वो गिनती।
याद अगर कुछ हो तो वो बस तुम,
एक लिफाफा इश्क़ का जिसमे,
स्याही की छिटे मिटा रहा हो,
वो सफेद पन्ने का इश्क़,
वो उस पन्ने को उस सफेदी से है,
अनकहा,अनसुना,अनदेखा और अंजिया,
रिश्ता था तो बारिश की पहली बूंद सा,
किसी प्यासी हथेली के साथ,
जिसपर हक़ जताने के किसी को हक़ न था।
पते का ठिकाना नहीं,न पता है ठिकाना उसका,
फिर भी उम्मीद हो, और इतनी हो की जी सके।
दरवाज़े की घंटी बजी तो ध्यान आया,
की ध्यान न था हमको की दरवाज़े की घंटी बजी,
फ़र्श पर बिखरे सपनो की नुकीली धारो से बचते हुए,
ताकी खरोच न आये और लहू के साथ साथ तुम्हारा कुछ हिस्सा न खो दूँ,
खोला दरवाज़ा और सुर्ख़ यादों की हवा जैसे बहा कर ले चली गयी,
मेरा कुछ हिस्सा अपने साथ, तेरा कुछ हिस्सा अपने साथ।-
परेशानी से लिपटी उंगलियां तेरा ख्वाब सींचे,
जाने न कि अब रात गहरी हो गयी है।
समंदर में गुम वो मोतियों से कहना रह गया था,
अब वो आज़ाद हैं क्योंकि पिरोने वाला धागा वो लेकर गया है।
लकीरों में ढूंढता फिरता एक अलग सा आसमान,
परिंदो से पूछता कुछ, कुछ तारे बताते मुझको।
ज़मीं पर पर्ची लेकर इधर उधर पूछता पता तुम्हारा,
पर दिन ढलते उम्मीद भी ढल जाती।
आँखों के किनारे पे तैरती तेरी परछाईं,
सोचा मूंद कर आँखें कैद कर लूं तुमको।
पर दिल घबराता रहा इस डर से कहीं,
प्रेम के नाम पर तुम्हें चोट न पहुँचे।
शिकायतें ढेरों थीं और तुम सामने बैठे थे,
मैं बता भी रहा था पर देर से याद आया कि
तुम लौटे नहीं, तुम लौटे नहीं।-
साहिलों तक पहुँच कर पैरों में लिपटी रेत को ले जाती है लहरे,
वक़्त से खिंचे हालातों ने कुछ इस तरह जुदा किया है हमको।-
अब किसी पे भरोसा जताए तो जताए कैसे,
तुम भी तो रुक्सत हुए,कोई लौट के न आये जैसे।-
खुली खिड़की के करीब रखी वो किताब,
जिसके पन्ने हवा के झोंके से पलटे,
खैर,कोई खास तो नहीं थी ये बात,
क्यों अब करे वक़्त बर्बाद,
तुम आओगे नहीं, तुम्हारी बंदिशें कुछ और है,
मैं आ तो सकता हूँ, पर मेरी नसीहतें कुछ और है,
मैं बताउगा तुमको की ये दो पल की मुश्किलों के वजह से मत तोड़ो हमे,
तुम बोलोगे,तुमने देखा ये सब बस दो पल इसीलिए दो पल की लगती है तुम्हे,
कुछ होना जाना है नही पर फिर भी दिल लगाए बैठे है,
हम इश्क़ की स्लिप तेरे नाम की संभाल रख बैठे है,
और क्यों न बैठे? तुम्हारे पलके झपकने के दरमियाँ साँसें मेरी अटैक जाती थी,
तुम करवट बिस्तर पर लेटी हो,सिमट मेरा मन जाता थी,
तुम ज़ुल्फ़ों को अपनी झटकती हो,नौका मेरी डूब जाती थी,
आंसू तुम्हारे गालो को छूकर गुज़रते है, कॉलर मेरी भारी हो जाती थी।
खैर इन बातों का अब कोई मोल नहीं,
तुम्हें अब कोई मना ले ऐसे किसी मे भी जोर नहीं,
खुशी इस बात की हमेशा होगी,तुम्हारी और मेरी कुछ बात अलग थी,
गम इस बात का हमेशा सताएगा,सब सही था बस हमारी जात अलग थी।-