खंजर
इन आंसुओं का ये हश्र क्यूं होना था
आंखों को हर शाम अफ़सुर्दा होना था
कुछ तो बात है तेरी याद में आज भी
वरना हाथ हर शाम जाम न होना था
तन्हाई बसती है दिल के किसी कोने में
तेरी हर याद का अंजाम यूं न होना था
फक़त ख़्वाहिश-ए-ज़ीस्त ही मांगी थी
तेरे कूचे से ही यूं बे-दख़ल न होना था
आस्तान-ए- यार पे क्यूं सिसके हसरतें
इश्क को यूं सरे आम रूस्वा न होना था
जफ़ा के खंजरों के हर राज़ क्या कहूं
तेरी आस्तीन में भी क्या उन्हे होना था
प्रस्तुति: राजकुमार गर्ग
दिनांक: 19 फरवरी 2022
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शौक
आस्तान-ए- यार पर सर टकराना मेरा शौक नहीं
अपनी मुहब्बत का हर जनाज़ा देखना शौक नहीं
मुंतज़िर नहीं मैं ख़ंदा-ए-लब का रोज़-ओ-शब
मेरी तुर्बत को तेरी जफ़ा के फूलों का शौक नहीं
मुस्तक़बिल तय किया था गुजरा जब तेरे कूचे से
ज़ख़्म-ए-पिन्हाॅ के मरहम का फिर यूं शौक नहीं
कायम है दिल में मेरे आज भी आशियाना तेरा
मुलाकात करूं रब से दिन रात मेरा शौक नहीं
प्रस्तुति: राजकुमार गर्ग
दिनांक: 16 जनवरी 2022
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वफ़ादारी
वक़्त बेवक़्त तेरी याद चली आती है
टूटे लम्हो की अज़ाब चली आती है
मुसलसल बढ़ते सफ़र में हर बार क्यूं
यूं जंजीर सी लिपटती चली आती है
वाबस्ता हैं भूलने की क़वायद मुझमे
तेरी गेसूओं की ही महक चली आती है
कौन करे परवाह रहे अधूरी ग़ज़ल मेरी
बज़्म कौन यूं रौशन किये चली आती है
शम-ए-तुर्बत भी मद्धम है शब-ए-ग़म में
चांदनी चांद की फिर क्यूं चली आती है
दफ़न है हर तसव्वुर तेरा तेरी जफ़ा में
आरजू संग अब ख़लिश चली आती है
ना-शुक्र शाम के खंजरों को कुछ न कहो
वो तेरी ही वफ़ादारी निभाये चली आती हैं
प्रस्तुति: राजकुमार गर्ग
दिनांक: 18 फरवरी 2022
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हश्र
इन आंसुओं का ये हश्र क्यूं होना था
आंखों को हर शाम अफ़सुर्दा होना था
कुछ तो बात है तेरी याद में आज भी
वरना हाथ हर शाम जाम न होना था
तन्हाई बसती है दिल के किसी कोने में
तेरी हर याद का अंजाम यूं न होना था
फक़त ख़्वाहिश-ए-ज़ीस्त ही मांगी थी
तेरे कूचे से ही यूं बे-दख़ल न होना था
आस्तान-ए- यार पे क्यूं सिसकी हसरतें
इश्क को यूं सरे आम रूस्वा न होना था
जफ़ा के खंजरों के हर राज़ क्या कहूं
तेरी आस्तीन में भी क्या उन्हे होना था
प्रस्तुति: राजकुमार गर्ग
दिनांक: 19 फरवरी 2022
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सुकून
रात की शोख़ियां बयां करूं या तिरे इश्क़ की
हाथ पकड़ ले आती है कू-ए-जानाॅ में क्यूं हर रात
तेरे तबस्सुम की शोखियां कुछ तोबयां कर जाती
अपनी पास-ए-रुस्वाई से सिहर न उठता हर रात
शाख़-ए-गुल पर ही टांग दिये थे तेरे तसव्वुर सारे
पेशानी पर क्यूं झुके चले आते हैं फिर ये हर रात
कू-ए-जफ़ा के अज़ाब से उबरना आसां नहीं होता
तलाश-ए-सुकूॅ ले आती तेरे ही कूचे में यूं हर रात
आंगन में उतर चांद याद दिलाता है जफ़ा की रात
तेरी यादों का सफ़र फिर भी देजाता सुकूॅ हर रात
प्रस्तुति: राजकुमार गर्ग
दिनांक: 17 नवम्बर' 2021-
गुस्ताखियां
बादलों की गुस्ताखियों का क्या कहूं
मेरे आंगन में उमड़ने के पहले
मेरे यार के शहर हो आती ही है
रूस्वा हुआ जिस ब़ज्म से
उसी ब़ज्म-ए-अग़्यार में ले चली आती है
मुसलसल उन गेसुओं की महक
ले आती है अपने संग
उसकी गुस्ताखियां सरापा
मेरे आस्ताने-ए-यार से
तस्कीं लाज़िमी सी है
अफ़सुर्दा मेरी मज़ार को
मुजस्सम तेरी रहनुमाई को
न सताये पास-ए-रूस्वाई मेरे यार की
कैसी होगी अज़ाब मिरी कह नहीं सकता
गर रूस्वा हो होगी रूख़सती
बज़्म से मेरा यार की
प्रस्तुति: राजकुमार गर्ग
दिनांक: 28 सितम्बर 2021
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गुनाह
मुख्तलिफ़ तुझसे
तेरी तसवीर हो नहीं सकती
मुसलसल दीदार करता है तेरा
तिरे किरदार का अपने सीने में
सरापा ये इश्क़ मेरा
रूबरू होता है
रोज़-ए-शब इश्क़ यूं ही
तेरी ही शख़्सियत से अपने आईने में
ख़ता तो थी रोका तुझे सफ़र में
मिरी ज़ख्म-ए-पिन्हाॅ ने ही गुफ़्तगू में
गुनहगार है आईना मेरा
तेरी ही शख्सियत से नजरें मिला
गुफ़्तगू करने का हौसला जो बाकी है
मुंसिफ़ मुकर्रर है तू मेरे आईने का
मुंतज़िर रहे तेरी सजा का ता-उम्र
यही सजा इसकी अब बाकी है
प्रस्तुति: राजकुमार गर्ग
दिनांक: 22 सितम्बर 2021-
ज़ख़्म-ए-पिन्हाॅ
इश्क़ को अपने बेपर्दा कर भी दूं
इश्क़ को मेरे देखेगा कौन
मसरूफ़ियत में वाबस्ता है यार मेरा
उठा एक नज़र यहां देखेगा कौन
ख़ंदा-ए-लब पैमां है जिनके
ज़ख़्म-ए-पिन्हाॅ यहां देखेगा कौन
है दफ़न सीने में मेरे जिक्र तेरा ही
रोक लेता हूं लबों तक आने से भी
सुन भी ले गर मेरा मसरूफ़ यार
गुफ़्तगू उससे भला करे कौन
कर भी दूं दफ़न तिरी याद वीराने में गर
शमा एक वहां फिर जलाये कौन
राजकुमार गर्ग
दिनांक: 21 सितम्बर 2021-
वादा
मुसलसल दस्तक देता दिल
आस्ताने यार पर रोज़-ओ-शब
पास-ए-रुस्वाई भला क्यूं सताये हमें
कर जायेंगे रूखसती भी
चराग़-ए-गोर का वादा तो हो
मेरे जाने के बाद
प्रस्तुति: राजकुमार गर्ग
दिनांक: 10 सितम्बर 2021
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सुकून
अफ़सुर्दा आंखें है मुंतज़िर आज भी
उनके एक दीदार को अपनी तुर्बत पर
रखा है पोशीदा राज़ दफ़न सीने में इसने
जला रखी है ये शम-ए-तुर्बत किसने
तस्कीं लाज़िमी सी है क्यों कि
चुरा न ले हसरतों को फिर यहां कोई
राजकुमार गर्ग
दिनांक: 5 सितम्बर 2021
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