Raj Kabir   (राज कबीर©)
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आप बस क़िरदार है अपनी हदे पहचानिए
वरना इक दिन कहानी से निकाले जायेगे ...
वसीम बरेलवी
Joined 13 June 2017


आप बस क़िरदार है अपनी हदे पहचानिए
वरना इक दिन कहानी से निकाले जायेगे ...
वसीम बरेलवी
Joined 13 June 2017
11 JUN AT 11:54

किताब का मोड़ (नज़्म)

तुमने उस किताब का पन्ना मोड़ दिया था
जहाँ कहानी आधी थी —
अब हर बार वहीं से पढ़ना शुरू करता हूँ,
पर पूरी कभी नहीं कर पाता।
शायद कहानी से ज़्यादा
मोड़ ज़िंदा है।

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2 JUN AT 23:36


It’s not easy to leave
when the walls have learned your name,
when light bends slightly different
where your shadow used to hang.

You pack the books,
but not the poem you wrote in steam
on winter windows.
You close the door,
but not the conversation still echoing
in the chipped paint.



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1 JUN AT 12:32


बहुत दूर जाकर भी नज़दीक है
कशिश है उसी पहली बात की

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31 MAY AT 10:31

वो चेहरा किताबों सा पढ़ते रहे
जो पढ़ना था दिल , पढ़ा ही नहीं

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23 MAY AT 8:37

निकल आ तू अब जेहन के पिंजर से
कोई रहता है क्या कैद दीवारों में

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15 MAY AT 12:39

बादल चुप थे
तुमने छू लिया
बरस पड़े वो .....

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6 MAY AT 10:26

उसने कहा यूँ,
“भीग चलो थोड़ा सा”
मैं बह गया फिर।

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5 MAY AT 19:24

बचपन
काम
पर है
उम्र पढ़ रही है ..!

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5 MAY AT 12:53


मैं परिंदा हूँ, उड़ जाना चाहता हूँ
बहुत दिन हुए, घर जाना चाहता हूँ

थक गया हूँ सफ़र की धूप से मैं
कहीं छाँव में मर जाना चाहता हूँ

जो उड़े थे कभी साथ बादल के जैसे
उन्हीं ख़्वाब में भर जाना चाहता हूँ

तेरी आँखों में जो था इक समुंदर
मैं फिर उसमें तर जाना चाहता हूँ

ज़िन्दगी, अब तुझे थोड़ी देर रोकूं
मैं ख़ुद से भी गर जाना चाहता हूँ

कभी ठहरा नहीं दिल इस जहाँ में
'कबीर' अब तो घर जाना चाहता हूँ

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3 MAY AT 12:34

खत्म हुई जो शराब पैमाने में
आई तेरी याद हर अफ़साने में

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