क्वचितच बोलणारा तो
शब्दांच्या बाबतीत तोडका होता
सुख दुःखाच्या आठवणींचा त्याच्या
बांध काहीसा मोडका होता।-
कोमेजलेल्या भावनांना
पुन्हा उधाण आलंय
प्रेमाच्या ह्या जगतात
नवं विधान आलंय....
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जंजीरों से जकड़ा आज वो भी तो इंसान
भले उसे जीने के लिए आजादी नहीं मिली।-
खून के सैलाब में
हम नंगे हो गए
बेहोशी की हालात में
दिल में दंगे हो गए...-
वक्त की कगार में
बरसो मे खड़ा हूं
कई मुश्किलों से जीतकर
में अपने आप से लड़ा हूं...-
ढूंढ रहा हूं खुदको आज मेरे ही तन्हाई में
लफ्ज नंगे हो गए और इश्क़ के दंगे हो गए..-
ग़ज़ल
दूर तेरी तन्हाइयो में मेरा इश्क़ बिखरा रह जायेगा
समंदर की इस गहराई में फिर शोर जरूर आएगा|
मुरजाये हुए कई फूलोंका कमरा हम आज सजायेंगे
उसी एक शामियाने से एक कमरा सामने आएगा|
कई दास्तांये लिखी जाएंगी उसकी दीवारोपर आज
तो किसी शायर का हर एक सपना पूरा हो जायेगा
रो पड़ेगी दुनिया जब बेवफाई का मंजर खुल जायेगा
सनम उसी एक कमरे में कल कफन मेरा बन जायेगा......
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हौसले थे बचे कुछे
जो आज समय के दायरे मे आकर ख़्वाबों के निचे गढ़ चुके है,
हिम्मत तो यु ही टूट गई थी
हमारी अब हारने के लिए आगे हम बढ़ चुके है.
टूटे हुए इस दिल की कश्ती को
मोहबत का आज कोई किनारा ना मिला,
गिरे हुए इस बेकार के जज्बातों से भरे इस बदन को आजतक कोई भी सहारा ना मिला
सहारा ना मिला...-