उस संगमरमर की मूरत को यूँ ही तराश कर लौट आई।
मेरी नजर मेरे दिल के खुदा की, तलाश कर लौट आई।-
कितना पास आ गये तेरे हम,
यूँ दूर जाने की कोशिश में।
बहुत याद कर चुके हैं तुझको,
भूल जाने की कोशिश में।
यह दिल है कि ज़िद्द किये बैठा है,
तेरे शहर में जाकर बसने की,
हम भी हार गये हैं खुद इसे,
नया घर दिलाने की कोशिश में।-
मुहल्ले के अहाते में,
एक जाम की खरीदारी नहीं है।
तेरे इश्क़ का नशा है
सस्ती दारू की सरशारी नहीं है।-
किसी गैर को उसकी आँखों की पसन्द बना दिया।
मेरी शक्ल ने उसकी नजरों को अक्लमंद बना दिया।
उसे सिर्फ चाहनेवालों की फेहरिस्त लम्बी करनी थी,
यूँ प्यार भरी नजरों से देखकर जरूरतमंद बना दिया।
मैं दिल से सोचता था जो उसे चाहत का गुलाब दिया,
अपने दिमाग से सोचकर उसने गुलाकन्द बना दिया।-
तेरे दिये हुए एक दर्द को अपने इश्क़ का हासिल समझा।
हमने तो तेरी नफ़रत को भी तेरे प्यार के मुमासिल समझा।-
सब कुछ छोड़ दिया तो हमने वक्त के तकाजे पर।
दिल किसी का क्या पढ़ते, आँखों के अंदाज़े पर।
आखिरकार मेरे दर्द की आवाज़ बनकर रह गई,
दस्तक देती ख़ामोशी मेरी तेरे दिल के दरवाजे पर।-
उस खुदा के सामने ही आज बेखुदी का मन हो रहा है।
उसी के दर पर बैठ कर यूँ मयकसी का मन हो रहा हैl
जिस दिन से मिली है दुआ तेरे बगैर मेरी लम्बी उम्र की,
न जाने क्यों खुशी से मेरा खुदकुशी का मन हो रहा है।
तुझे यूँ गले लगाऊँ कि अपनी रूह तेरे अंदर ही छोड़ दूँ,
ज़िन्दगी के इस मुकाम पर अशिकी का मन हो रहा है।
राज़ भला क्या है जाने मेरी इस दीवानगी का क्या पता,
जो मेरा कभी हो नहीं सकता, उसी का मन हो रहा है।-
एक रंग प्रेम का हो, एक रंग हो भाईचारे का।
निखर जाएगा रूप, मानवता के गलियारे का।
यह रंग जमीं पर बिखरे तो रंगोली कहलाता है,
जब तन पर निखरे तो फिर होली कहलाता है,
इंसानों ने स्वार्थ खातिर, रंगों को भी बाँट दिया,
रंग को आधार बना डाला धर्मों के बटवारे का।
एक रंग हो...
रंग में रंग मिल जाए फिर जुदा कब होता है,
इंसान मगर मन में नफरत के बीज़ ही बोता है,
भेद-भाव की जा जंजीरों में खुद को बाँध कर,
गुलाम बना बैठा है, अपनी सोच के दायरे का।
एक रंग हो...
यह भेद-भाव की दीवारें, यूँ तो टूट न पाएँगी,
यह जात -पात की हथकड़ियां छूट न पाएँगी,
जब तक न होगा यह एहसास सब के दिल में,
राज़ तब तक न जानोगे, इन रंगों के बारे का।
एक रंग हो...-
"मैं होलिका बोल रही हूँ "
हिरण्यकश्यप की बहन सगी हूँ मैं।
रिश्तों की शायद बेबशी हूँ मैं।
मात्र खलनयिका मुझे मत जानो,
अपने इलोजी की प्रेयसी हूँ मैं।
चाहत की एक कहानी हूँ मैं।
हाँ एक प्रेम दीवानी हूँ मैं।
मात्र बुराई का प्रतीक मुझको न जानो,
अग्निदेव की एक वरदानी हूँ मैं।
अपने इलोजी से विवाह करना था मुझे,
और भाई का भी, मान रखना था मुझे,
पर थी शर्त पर यही मरी प्रेम मिलन की,
भतीजे को आग में लेकर जलना था मुझे।
हाँ मेरे लिए भी बारात निकल चुकी थी।
आँगन में शाहनाई भी तो बज चुकी थी।
मगर जब प्रियवर से मिलन की घड़ी आई,
तब तक देह यह मेरी राख बन चुकी थी।
मेरी आँख ने तो नहीं पर रूह ने देखा था।
जो मेरी इस कहानी का सच अनदेखा था।
जब सेहरा फैक कर मेरे प्रियवर इलोजी ने,
मेरी खातिर मेरी जलती चिता में झोंका था।
कहीं गलत हूँ तो कहीं पर सही हूँ मैं।
सच्चे प्रेम की शायद एक बेबशी हूँ मैं
एक अच्छी बहन तो मैं हूँ ही शायद,
अगर एक अच्छी बुआ नहीं हूँ मैं।।-
अगर कुछ खूबसूरत है, तो तुम्हारी सादगी है।
इस दुनिया में बाकी हर एक सय कागजी है।।-