Rahul Yadav   (✍️sirius_rahul)
271 Followers · 70 Following

read more
Joined 28 June 2019


read more
Joined 28 June 2019
26 SEP 2024 AT 0:09

लोग टूटने से डरते है
पर तोड़ने से नहीं डरते ...

-


17 FEB 2024 AT 22:03

साल की इन तारीख़ों सा रहा इश्क़ तेरा-मेरा
साल बदलते रहे ,पर तारीख़ें दोहराती रही !!

-


11 DEC 2023 AT 20:12

जिसे नसीब नहीं
सूरज घर के आंगन का,
बंद खिड़कियां अक्सर
उससे सवाल बहुत से करती है..

-


4 OCT 2023 AT 20:56

मुख्तलिफ ख़ुद के मौन से हुए तो पता लगा
ये चढ़ती उम्र से हादसे भी ज़रूरी है जीने को ।।

-


18 SEP 2023 AT 8:57

क्या चाहिए था ? क्या चाहिए था मुझे...एक 9 टू 5 वाली जॉब, सुकून में गुजरती शामें और.. कभी न खत्म हो सकने वाली सुबह.. गर क्या हुआ जो मेरी ज़िन्दगी में इन महंगी तमन्नाओं का नाम नहीं है, फ़र्क सिर्फ़ इतना रहा कि कुछ शामें उधार रही रातों पर, तो कुछ रातें सुबह पर उधार हो गई.. वक्त सिलसिलेवार गुजरता गया और मैं जिंदगी के प्लेटफॉर्म पर कई अनगिनत लोगों को विदा करने को ठहरा रहा..

-


3 SEP 2023 AT 10:00

वो बूझ रही थी किसी किताब के पन्ने पर कहानी को
और मुझे मेरी कहानी में उसका ज़िक्र सूझ रहा था ।।

-


29 AUG 2023 AT 23:47

कहते है वर्तमान या तो भविष्य के किसी मसले की धुरी पर घूमता है या किसी अतीत को खुद में समेटे हुए, वैसे..गलतियां संभलने का मौका कम ही दिया करती है..और मैं अपनी कहानी के किरदार की बात क्या कहूं,खैर आज के दिन कुछ अपनी ही कहूंगा, उम्र के बदलते इन अक्षरों में अब केवल जिम्मेदारियां ही नज़र आती है, उम्र के इस दोराह पर,जब दूर तलक देखता हूं तो नज़र पड़ती है उस धुंधली सी तस्वीर पर, जिसमें जी रहा हूं वो जिंदगी..जो कभी सोची ही नहीं थी और जब दूसरी तरफ देखता हूं तो एक लंबा कोसों मील चलने वाला अंजाना रास्ता दिखाई पड़ता है, जिनमें मुझे अपने ही साये के साथ आगे बढ़ते जाना है , अक्सर हम या तो जिंदगी के हसीन ख्वाब देखते है या फिर उनसे जुड़ी उलझनों से डरने लगते है..पर सच तो ये है कि जो हम जीते है वो इसके बीच की ही कोई कहानी होती है, जिसके किरदार बेशक हम होते है पर ये कहानी कोई और ही लिख रहा होता है !!

-


28 AUG 2023 AT 21:36

हूँ काबिल कम थोड़ा,पर नाकाबिल नहीं

मैं तेरा हूँ जितना, किसी को हासिल नहीं



तुम जानते हो,मेरे वजूद के हर हाशिये को

हुनर में आशिकी के,मैं इतना माहिर नहीं



प्रेम अनकहा आज भी जायज़ लगता है मुझको

शायद इसलिए जमाने में, मैं साहिर नहीं...

-


28 AUG 2023 AT 4:03

क्या फ़र्क पड़ता है
मैं तुम्हें पढूं या किताब
खैर पढ़ना जरूरी है..

-


6 JUN 2023 AT 9:37

चंद रुपयों के लिए हर रोज़, दफ़्तर के दो चक्कर लगाता हूँ,
फ़ुर्सतों को बेचकर…दो वक़्त का निवाला उतारता हूँ ,
कभी मन की कहता हूँ, कभी मन में ही रख जाता हूँ
निढाल पड़ा होता हूँ जब, तो ख़्यालों की कश्ती चलाता हूँ
मंज़िल नहीं मिलती कभी, हर दफ़ा बीच में ही डूब जाता हूँ
दर्द की कैफ़ियत से जी चुराकर, फिर से मुस्कुराता हूँ,
सपनों की दुनिया ख़ाक करके, हक़ीक़त के पुल बनाता हूँ
दौड़ कहाँ पाता हूँ अब.. चलते-चलते ही गिर जाता हूँ ,
कुछ पल थमता हूँ..फिर चलने लग जाता हूँ
लिखता हूँ मिटाता हूँ.. फिर पन्नों पर रिस जाता हूँ,
मैं वो शख़्स हूँ..जो कमाता कुछ नहीं..
पर रोज़ ही बिक जाता हूँ ॥

-


Fetching Rahul Yadav Quotes