कद्र है सच कह रहे हो,
मान लूं बात, तुम इश्क़ कर रहे हो।
सच कहना तुम्हें मालूम था न हाल-ए-दिल,
दिल की बात करेगा ये, इसलिए नज़रंदाज़ कर रहे हो॥-
पर क्या है न किस्मत, महादेव और हम खुद भी अब रूठ चुके है, शायद हम से हम ही छूट चुके है ॥
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हज़ारों मर्तबा लिखा होगा और हज़ारों दफा लिखेंगे । एक राज़ है दफ़्न इस दिल में, कभी न कभी तो लिखेंगे ॥
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चलो अब इस मोड़ पर जाने भी दो,
देखो, उलझनों को अब सुलझानें भी दो।
आँचल में समेट कर लोरी सुनाने भी दो,
छोड़ों, जाने वालों को अब जाने भी दो॥
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हम तो कोई ख़ास नहीं,
तुम अपनी खुशियाँ, मुस्कुराहट और दिल को खोना मत।
ग़र जाने बाद तुम्हारे ना दिखें,
तो तुम रोना मत॥-
इत्तेफ़ाक़, इत्मिनान, सुकून सब तुझसे,
मेरे मुकम्मल हज़ारों सपने सब तुझसे।
एक रवायत है जग से मेरी,
हमारी जान, ये दुनिया-जहाँ सब तुझसे।।-
कोशिशें तमाम की थी हमने,
कुछ अधूरे ख्वाब लिए इन आँखों में ।
खोया किसी ओर ज़हाँ में कोई,
खोजते रहे ले लौ उम्र भर इन आँखों में ॥-
ख़त्म करते है एक दफ़ा और,
चलो जाने देते है एक दफ़ा और ।
काँच जैस ही सही पर उसका हक ओर,
चलो टुट जाने देते हैं एक दफ़ा और ॥-
ये जो खालीपन महसूस करते हो, हल्के मीठे दर्द के साथ ।
ये जो नुमाइश होती है जिस्मों की, इश्क के नाम पर होते फरेब की ॥
सब्र का बाँध अब तोड़ चुका है, ये दिल उस प्यार वाली राह को छोड़ चुका है ।
रेंगती आकृत्तिया है अभी और भी इस जहाँ में , तु रुक तो सही ।
पलट और देख क्या हश्र हुआ है उस बाग का, जहाँ से बस एक फुल तोड़ लेने पर रूठ गया था तूँ ॥-
मन की पीड़ा मन ही जाने, कोई जाने न पीड़ पराई ।
मन तो चंचल और है भोला मन जाने न कोई बुराई ॥
मन तो मन की करता है,है मन से मन की लड़ाई ।
मन है मेरा और मन तेरा, मन के मन की कढ़ाई ॥
मन ही मन मुस्काते है, मन ही मन की भम्राई ।
और जो मन को बाँध सके, वो वीर सहो रधुराई ॥-