Raahul O Shrivas   (Rahul shrivas©)
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Joined 31 May 2017


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Joined 31 May 2017
19 MAR AT 9:33

कदाचित्
आकलन ठीक नहीं

किंतु
संघर्ष में किया प्रेम
विलासिता में किए प्रेम से
अधिक श्रेष्ठ है।

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18 MAR AT 10:26

संभवतः
नदियाँ नहीं समझ पाई
पहाड़ों के मौन प्रेम को

उन्हें आकर्षित करती थी
समंदर की उठती लहरें

समंदर के प्रति नदी का प्रेम,
नदी के प्रति पहाड़ के प्रेम को
कम नहीं कर पाया,

कितना सुंदर दृश्य है
मैं अब भी मौन हूँ।

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17 MAR AT 21:47

मिट्टी में मिल जाने को है,
यानी की हम जाने को है,

मौसम सुहाना बदलने लगा,
खुशियों पे बादल छाने को है,

बस्ती में बच्चे क्यों दिखते नहीं,
लगता गए सब कमाने को है,

घर को तो माँ ने सजाया था पर,
लगता नहीं बेटा आने को है,

रिश्ते नए हैं कहानी नई,
ख़त वो पुराने जलाने को है,

देकर नसीहत हिदायत कईं,
देखो बुरा वक़्त जाने को है।

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17 FEB AT 13:32

और कुछ ज़्यादा नहीं हिम्मत ज़रा सी चाहिए,
हो मयस्सर फ़न से जो दौलत ज़रा सी चाहिए,

मार देती है हुनर को नौकरी की बेड़ियां,
इस कलम पे ऐ ख़ुदा रहमत ज़रा सी चाहिए,

हम पे आमद हो रही है काव्य कविता शायरी,
लिख सकूँ इनको कहीं फ़ुर्सत ज़रा सी चाहिए,

बैठ जाता हूँ मैं रख के सर पे अपने हाथ को,
इस इमारत के शहर में छत ज़रा सी चाहिए,

भागता हूँ पीछे जिसके ये वो मंज़िल है नहीं,
अपना रस्ता चुन सकूँ ताकत ज़रा सी चाहिए,

बेचता हूँ दिन के साथ ख़्वाब भी अपने सभी,
मुझको कुछ पल के लिए राहत ज़रा सी चाहिए।

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14 FEB AT 23:27

कदाचित्
प्रेम वह पौधा है
जो दूरियों में पनपता है।

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11 FEB AT 18:12

वैसे तो एक आम कहानी लगती है,
तू जो संग हो शाम सुहानी लगती है,

देख तुझे ये धड़कन धक-धक करती है,
हमें तो ये पहचान पुरानी लगती है,

और महोब्बत हमको फिर ना हो जाए,
लड़की ये भी ज़रा दीवानी लगती है,

गज़ब का मतला यार ये तुमने फ़रमाया,
ग़ज़ल के जैसी शक़्ल वो यानी लगती है,

चाश्नी जैसी बातें उसकी झील सी आँखे,
रात में देखो रात की रानी लगती है,

अंत मैं जो कुछ चाहा वो हमने पाया
ये सब उसकी मेहरबानी लगती है।

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7 FEB AT 22:56

खुशबू का तेरी असर हो रहा है,
पागल ये सारा शहर हो रहा है,

तेरे नगर से निकलता धुआँ,
मिलके हवा संग ज़हर हो रहा है,

बारे में खाने के पूछे जो माँ,
कहता हूँ हाँ पेटभर हो रहा है,

चलता सँभल के हूँ पर मैं मगर,
हादसा एक ही अक्सर हो रहा है,

सोचा था जीवन में ये तो कभी,
होना नहीं था मगर हो रहा है,

अजब सा नशा है तेरी याद का,
लगता है के रातभर हो रहा है।

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6 FEB AT 22:52

प्राण का आधार तुमसे,
प्रिये ये संसार तुमसे,

जीत हो के हार हो अब,
है हमें स्वीकार तुमसे,

क्षण ऋतु दिन वर्ष महीने,
श्वास का संचार तुमसे,

क्या भला दर्पण कहेंगे,
है मेरा श्रृंगार तुमसे,

बिन तुम्हारे कुछ नहीं है,
है सभी त्यौहार तुमसे,

प्रेम की ये प्रार्थना है,
हो मेरा परिवार तुमसे।

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4 FEB AT 22:20

झांको दिल के अंदर देखो,
बाहर से ना समन्दर देखो,

गिरा के ज़ुल्फें शाम सजाए,
शहर का जादू मंतर देखो,

देखना उसको अच्छा है पर,
ऐसे भी ना निरंतर देखो,

तुमको भी कोई देख रहा है,
देखो ज़रा संभलकर देखो,

मैं कल से ना दिख पाऊंगा,
आज ही आँखे भरकर देखो,

शायद काम ये हो जाएगा,
फाइल पे कुछ रखकर देखो,

पढ़ लिखकर फिर भागो दोडौ,
थक जाओ तो पत्थर देखो,

सुना है सब की सुनता है वो,
तुम भी अपनी कहकर देखो।

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3 FEB AT 8:59

किसी की आँखों में घर ढूंढता हूँ,
मुसाफ़िर हूँ मैं एक दर ढूंढता हूँ,

ये ग़मगीन रातें ये नाशाद दिल,
शब-ए-ग़म की कोई सहर ढूंढता हूँ,

मैं रोज़ी के ख़ातिर यहाँ से वहाँ तक,
शहर फिर शहर फिर शहर ढूंढता हूँ,

न जाने कहाँ ये कदम ले चलेंगे,
मैं खोई हुई रहगुज़र ढूंढता हूँ,

मंदिर में खोजूँ के मस्जिद में जाऊँ,
वो मिलता नहीं मैं जिधर ढूंढता हूँ।

हैं चाहत के पी लूँ मैं अमृत का प्याला,
न जाने मगर क्यों ज़हर ढूंढता हूँ।

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