क्यूँ रात के सन्नाटे में कुछ झींगुर शोर मचाते हैं
जाने क्या है इनके दिल में जाने किसको बतलाते हैं
शायद दिल टूटा हो इनका और इनका भी कोई ठेका हो
शायद चिल्ला के नाम उसका ये अपना दर्द मिटाते हैं
यां शायद किसीकी शादी हो और साथी ढोल बजाते हों
कुछ DJ पर गाने के लिए लड़ते हों शोर मचाते हों
जाने क्या है इनके मन मे अपनी तो बिजली ही गुल है
अब छत पर सुनकर शोर इनका हम कोई कहानी बनाते है
क्यूँ रात के सन्नाटे में कुछ झींगुर शोर मचाते हैं-
कोई बीमारी कोई पीड़ा
दर्द तो दे सकती है लेकिन
दुख देते कुछ अपने हैं
नींद नोचते ख्वाब फाड़ते
मेरे मन की शाल खींचते
मेरे ही कुछ सपने हैं
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कोई भी दिल पे न ले अपनी हार जीत को
किसको क्या मिला ये तो किस्मत की बात है-
ख़्वाबों का हालातों से, अब कोई समझोता नही होगा
आज तक होता होगा , लेकिन अब आगे नहीं होगा
हम गिरते पड़ते जैसे भी , पा लेंगे अपनी मंजिल को
असली चेहरा तुम देखोगे , अब कोई मुखौटा नही होगा
किलकारी गूंजेगी हरसू , कोई कहीं पे रोता नही होगा
अब सारे सिक्के दौड़ेंगे , कोई सिक्का खोटा नही होगा
ऊंच नीच और जात पात का, कब से ज़माना चला गया
अब सब एक जैसा सोचेंगे , कोई बड़ा या छोटा नही होगा-
कुछ लोग भूखे सोते हैं
और कुछ खा के भी रोते हैं
कुछ दूसरों के हिस्से पे
इक काली नज़र टिकाते हैं
पर चैन से वो सो पाते हैं
जो मेहनत की रोटी खाते हैं
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कई बार लिख के मिटा चुका हूं
मैं सबूत सारे मिटा चुका हूं
तू ना जाने अरमां थे कैसे कैसे
सो बार तुझको बता चुका हूं
पर नींद की आगोश मैं तुम
कहां मुझे पहचानती हो
सुनती नही हो मेरी कहानी
जो तुम्हे मैं फिर से सुना चुका हूं
तेरी शहर भर से है रिश्तेदारी
और ज़माने से दोस्ती
तेरी दोस्ती के किस्से जवां है
खैर मैं तो अपनी निभा चुका हूं
तेरा इश्क सिर्फ लाल ही है
कईं रंग अपने बहा चुका हूं
जो न मैं मिला तुम्हे कल से तो
ना समझना तुमको भुला चुका हूं-
तू ही चांद है, तू ही रात है
तू ही दिन और उसका आगाज है
तेरी नज़र खूबसूरत है
तेरी नज़र का सब कमाल है
इस रात का गालिब मुझे
तू बना के शायद मानेगी
मेरे पास लेकिन तू नही
मेरे पास ना ही शराब है-
हां ठीक ही कहती है दुनिया
ये दुनिया बड़ी निराली है
ठग है , मेला है , माली है
ये दुनिया रंग रंगीली है
जैसे कोई मीठी गाली है
कोई चुभता सा एक नश्तर है
कोई भारी सी दुनाली है
हां ठीक ही कहती है दुनिया
ये दुनिया बड़ी निराली है-
दूध को मट्ठा होने में,जनता को इकट्ठा होने में
गैरों से मन के मिलने में, फिर हंसी का ठट्ठा होने में
कुछ वक़्त तो लगता है यारो
कुछ वक़्त लगेगा ही प्यारो
अंगूर को दारू होने में, इन्सां को जुझारू होने में
बगिया फूलों से लदने में, मिथ्या निंदिया से जगने में
कुछ वक़्त तो लगता है यारो
कुछ वक़्त लगेगा ही प्यारो
बन्दे को ज़रा परखने में और कर्मों के फल चखने में
पुरुषार्थ भाव में तपने में और प्रेम के ख़ातिर खपने में
कुछ वक़्त तो लगता है यारो
कुछ वक़्त लगेगा ही प्यारो
रात की चादर फटने में और दुख के बादल छटने में
बिखरे हालात समझने में और बिगड़े हुए सुधरने में
कुछ वक़्त तो लगता है यारो
कुछ वक़्त लगेगा ही प्यारो
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