Rahul Ray   (रुह)
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A student,a learner. Come On insta guyes @ruh81301
Joined 6 December 2019


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11 MAY AT 18:38

ताकि राहगीरों के पांव बचे,हमने रास्ते के पत्थर चुने
जमाना मोती चुनता था,हम थे कि हमने पत्थर चुने।

कब तलक खून बेचकर कमाए दो वक्त की रोटी, बनाए शाहजादों के महल,अब जरूरत है कि मजदूर अपना घर चुने।

राहगीरी की ये बातें,कसमें ये मुसाफिरत के
मांझी पर बात तो तब है,जब थकन के बाद फिर से कोई सफर चुने।

लरज गए हों जो कभी जंग-ए-मोहब्बत, दामन-ए-यार
रहा बस इल्म का फासला,ज़िंदगी चुने कि ज़हर चुने।

तन्हाई हम पर लाज़िम भी है वो भी इस लिहाज़ से,
हमने गुलाब रुस्वा किए "रूह" और गुलमोहर चुने।

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7 MAY AT 9:27

इसके पहले कि मै उलझ जाऊं इस पहेली मे,फ़कीर मुझे कुछ इल्म बता
है छूना एक तिलस्मी बदन और फिर बुत भी नही बनना मुझको।

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5 MAY AT 3:04

हम अपनी तरह की कहानी के तलबगार ठहरे
हो मुमकिन तो कहानीकार महबूब को बिछड़ जाने दो, आशिक ख़ून थूके।

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3 MAY AT 18:20

जदूनगरी,जादूगर वो,जादू उसकी बात
जादू-जादू जाप चढ़े,जोगी जग जाप सुहाय।

जंतर-मंतर,ताप-तपोवन,साधना सिद्धी या समर्पण
नयन नेह मे नम प्रणय गेह निरंतर,मन अर्पण-तन अर्पण।

बेरंग रंग्यो रंगीलो रसिया,रग-रग रंगऋतु रंग
हारी मै हारी,सजन वारी वारी,का रंगमहल का जंग।

उर्वर उर मे उमंग बन उतरे,उर्मिल उपवन उदात
सांवरो श्याम,सजल सरोवर सावन सा दिन रात।

धूप छांव,कब नीम शहद,कब बरखा कब आग
मोह महावार मेहंदी बन महके विरह व्याप्त वैराग्य।

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18 DEC 2023 AT 18:56

हुआ ही क्या हक़ में हमारे,
ना फलक,ना जमीं,ना चाँद,ना सितारे।

वो रातों की पुजारन हमे सौगात मे दे गई तिरगी,
दिए तो छोड़िए हमने उतार फेंके चेहरे तलक से उजाले।

यही वो दिन थे की पंछी घोसला छोड़ गया,
और आसमां तकता रह गया एक शजर दरिया किनारे।

अब पहले सा खुमार कहां दैर ओ हरम मे "रूह"
अब पहले सा दाग नही दामन मे तुम्हारे।

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26 NOV 2023 AT 16:39

तनिक पलटो,
की ये चौखट सदाएं देती है,
जाने वाले तुम्हारे बाद दस्तक को तरसेंगे।

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11 NOV 2023 AT 8:25

मै लाख कहुं चारागर दवा नही बदलता,
टांके खोल देता है,पर नुस्खा नही बदलता।

अब सुलगता है जिस्म तो फिरता हुं मंदिर मस्जिद,
हाय पर रिश्वत लेकर फ़कीर दुआ नही बदलता।

इस मैय्यती से हमे रूख्सत करो की पांव शल होते हैं,
दोस्त तुम्हारा गम कांधा नही बदलता।

खुदा खैर रखें आशियाने,अब सब तूफ़ान के हवाले
पंछी हर बार तो घरौंदा नही बदलता।

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29 OCT 2023 AT 22:45

इक लम्स का असर है कि सांस चलती है,
मै तुम्हारी हथेली पर उग आया था मुझे संवारने वाले।

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18 AUG 2023 AT 9:55

मेरी व्याकरण की किताब तुम्हारे कमरे मे रह गई थी,
विवर्तनी मे अशुद्धियां बढ़ने लगी हैं,
सुनो पागल लड़की जब घर से कभी बाहर निकलना हो,तो उसे चौक पर उस पीले वाले मकान के सामने बनी पत्र पेटी मे रख जाना, जहां बोगिनविलिया के गुलाबी फूल जूही की महक के साथ कौवों के कारवां को आमंत्रित कर दिन भर पढ़वाते हैं अजनबियों के प्रेम पत्र।
कोई कौवा मेरी बिल्डिंग का उठा लाएगा व्याकरण की किताब और साथ मे कुछ चिट्ठियां,जो सनी होंगी किसी एकांतवास मे लिखे गए प्रणय पहाड़ों मे सुगंधित इत्र भरी स्याही से।
जब रात के तीसरे पहर मे चांदनी मुखर हो चूम रही होगी धरती का कोई कोना,तो मै अपने किताबों को सुला कर पढ़ लूंगा थोड़ी व्याकरण,और सारी चिट्ठियां।

फिर मेरे अन्दर दो बदलाव आएंगे,एक तो मेरी विवर्तनी ठीक हो जाएगी,और दूसरा ये कि मै फिर से लिखूंगा एक पत्र,और सौंप दूंगा हवा को चाहे वो जहां ले जाए,चाहे जिसके हाथ लगे,चाहे जितनी दूरी तय करे वो भी इस शिर्षक के साथ - पत्राचार,अजनबी को अजनबी के नाम,और अजनबी के जवाब का इंतज़ार।

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17 AUG 2023 AT 9:00

दरमियां बचा रहेगा मारासिम ख़त्म होते हुए,
मै बुझ रहा हुं मगर कम होते हुए।

घाव सब एक दिन नए चेहरे पहन लेंगे,
ज़ख़्म मिट जाएंगे एक दिन मरहम होते हुए।

कहां तो ज़माने मे किस्सागोई है सनम से बुत होने के,
और मैने देखा है दैरों मे बुतों को सनम होते हुए।

चलो इस जन्म न मुमकिन था गंगा होना,सो काशी किनारों पर सिमटी
अगली बार मै छू लूंगा काबा जमजम होते हुए।

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