होगी पूरी हमारी ये अधूरी तलाश
हूँ हर शाम बैठा यादों के आस-पास
लगाए अपने मन की उनके दिल से आस
"पाने को मुझको ज़िद सा अड़ जाएगी
एक दिन रोशनी इन अंधेरो से लड़ जाएगी"
भटकते राही की दुवाओं में असर होगा
सहारे उनकी आँखों के ज़िंदगी का सफ़र होगा
इंतजार ये हमारा कभी न कभी तो सफल होगा
"पाने को मुझको ज़िद सा अड़ जाएगी
एक दिन रोशनी इन अंधेरों से लड़ जाएगी"
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हमदम से रिश्ता आजकल मेरी आँखों से रिसता है
दे रहा झूठे दिलाशें मुझको इश्क़ उसका निर्णायक दिखता है
उसकी नज़रों का काम काला स़िला मिला आख़िर है
दिल तोड़ने का कारोबारी वो शरीफ़ बेसुम़ार शा़तिर है
"वो खिलना-मुरझाना मस़ले सारे क़ुदरत के सामने रखूँगा
निकलकर सदमे से बाहर क़लम की श्याही रौशन रखूँगा"
झूलता देख गैर की बाहों में मर न जाऊँ ये कैसा असर है
रुकेगा यादों का सैलाब कैसे इससे मेरी ग़दर है
खूब झूमकर बरशी घटा जिसमे मेरी शामें भीगी है
बिंदी लगाना,पायल छनकाना अब भी उसकी ख़ूबी है
"वो खिलना-मुरझाना मस़ले सारे क़ुदरत के सामने रखूँगा
निकलकर सदमे से बाहर क़लम की श्याही रौशन रखूँगा"
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दूं प्रमाण क्या प्राणप्रिय,मन व्याकुल सही है
आँखे न्योछावर है,चोट अंदरूनी कही है
"गए हो जबसे मेरा शहर छोड़कर"
उपहार हो अमानत हो तुम,ह्रदय तो बेकसूर क्या ज़मानत नहीं है?
आओ लो जायज़ा बिल्कुल राहत नहीं है
"गए हो जबसे मेरा शहर छोड़कर"
बाँहे लिपट निपट अब लेंगी बेक़ाबू चाहे संयम ठहराओ
झंझोर रही है शामें मुझको फौरन आ जाओ
"गए हो जबसे मेरा शहर छोड़कर"
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प्रेमपथ कहीं नहीं,स्नेहमुक्त पूरा संसार
आनन्द भरा था जीवन,करके साज़िश विस्तार
आओ सुनाऊं ह्रदय परिणय नीति परिणाम
बेख़ौफ़ होकर किया रूप ने कैसा काम
छाया सघन व्यथा का समीकरण,हम अधर में लटक गए
हँसकर पूछे पापी दुनिया बौरा गए या भटक गए?
कर दिया पागल-करार,इतना विरोध!
होकर विचलित मन लेले न प्रतिशोध
चरित्रहनन कर जाएगा ऐसे-कैसे
प्रबंध कर मृत्यु शीघ्र आये जैसे-तैसे
छाया सघन व्यथा का समीकरण,हम अधर में लटक गए
हँसकर पूछे पापी दुनिया बौरा गए या भटक गए?
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दर्ज होती उदास शामें क्या बला है?
बता दो राही किस राह चला है?
एकतरफ़ा बेपनाह है, तुम विचार-विमर्श कर रही हो
है क्रूर आपदा मचा क़हर,तुम तलाश क्यों भंग कर रही हो
"मेरी इस बात का जवाब कौन देगा?
मेरी नींदों का हिसाब कौन देगा?"
बनकर सुबह मेरी उदास आखों से तगड़ा-झगड़ा कर रही हो
है सुझाव गला घोंट दो,सुना है सबको आबाद कर रही हो
क्या बला हो तुम काफ़िर,सात्क्षात-उत्पात कर रही हो
जुमले देकर क्यों और कैसा न्याय कर रही हो
"मेरी इस बात का जवाब कौन देगा?
मेरी नींदों का हिसाब कौन देगा?"
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दर्ज होती उदास शामें क्या बला है?
बता दो राही किस राह चला है?
एकतरफ़ा बेपनाह है, तुम विचार-विमर्श कर रही हो
है क्रूर आपदा मचा क़हर,तुम तलाश क्यों भंग कर रही हो
"मेरी इस बात का जवाब कौन देगा?
मेरी नींदों का हिसाब कौन देगा?"
बनकर सुबह मेरी उदास आखों से तगड़ा-झगड़ा कर रही हो
है सुझाव गला घोंट दो,सुना है सबको आबाद कर रही हो
क्या बला हो तुम काफ़िर,सात्क्षात-उत्पात कर रही हो
जुमले देकर क्यों और कैसा न्याय कर रही हो
"मेरी इस बात का जवाब कौन देगा?
मेरी नींदों का हिसाब कौन देगा?"-
यादों के साथ दर्दो के बादल छाए है भरकर
बाँहों वाले दरिया में फेंका-फांकी पकड़ो कसकर
नजरों ने की थी सारी रंगदारी डटकर
"हमने लिखे-लेख है सारे संगम के तट पर"
है क्लेश भयंकर तन-मन रूप के दमपर
अंधेरी गलियों से निकली खुमारी हँसकर
रजामंदी से आई चाँदनी रातें आफ़त बनकर
"हमने लिखे-लेख है सारे संगम के तट पर"
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ऋतुऐं तमाम बीती रंजिशें सुलझाकर
थे अपराधी विपदाओं का रूखापन पाकर
"अच्छा लगा लेखक की दुनिया मे आकर"
खुद को खुद तक बिखराकर
तहख़ानों की सच्चाई से टकराकर
"अच्छा लगा लेखक की दुनिया मे आकर"
होकर भयमुक्त बिगुल बजाकर
कुछ भी से कुछ नहीं बेहतर फ़रमाकर
"अच्छा लगा लेखक की दुनिया मे आकर"
जीवन नाटक कबाड़ का पहाड़ बतलाकर
बेतरतीबी सारी सिलसिलेवार समझाकर
"अच्छा लगा लेखक की दुनिया मे आकर"
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करुण वेदना ह्रदय में दबाकर मरना था जितना मधुरता से मर लिया
ज़माने के लेनदेन में झुलस सचमुच सोपान सर्वदा बसर लिया
दुर्बोध थी ज़िन्दगी रंग और खुशबू का जादू आज चिन्हित कर लिया
ठहरा मैं युधिष्ठिर प्रवासी मोतियों और रत्नों का खज़ाना भर लिया
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टकराकर पत्थरों से राही का नसीब संभला नहीं
दर्द वही , अल्फ़ाज़ वही
जीने के लिए थोड़ा सुकूं थोड़ा सा चैन मिला नहीं
जंगल वही , आग वही
कर बगावत शराफ़त से अब किसी पर भरोसा नहीं
आसमाँ वही , ज़मी वही
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