Rahul -राही   (- राही)
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Joined 3 January 2018


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21 APR AT 15:49

सभी ऐब देखते हुनर कौन देखता है
जहां में जीने का जौहर कौन देखता है ,

तेरे चेहरे का नूर तो सबने देखा है
गढ़े हैं सीने में खंज़र कौन देखता है ,

तेरी मंज़िल की रौनक पे सब फिदा हैं
कठिन कितना ये सफर कौन देखता है ,

सब कुछ देखकर भी आंखें चुप रहती हैं
दिल में तूफ़ां का कहर कौन देखता है ,

हम जैसों को जो मिल जाये वही साथी है
वरना हम जैसो का सबर कौन देखता है ,

मेरी आँखों से भी वही सब दिखता है
तेरी आँखों से भला मंज़र कौन देखता है ,

-राही









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20 APR AT 4:40

सब कुछ करके देख लिया है
जी , मन भरके देख लिया है ,

जीना इतना मुश्किल है क्या
हमने मरके देख लिया है ,

बातों में जादू था उसकी
बातें करके देख लिया है ,

आंखों में डर कब टिकता है
हमने डरके देख लिया है ,

अंदर भी तो तू रहता है
हँसके - रोके देख लिया है ,

जीवन की सच्चाई क्या है
लिखकर पढ़कर देख लिया है ।।



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20 APR AT 3:42

बदल जायेगा , बदल गया है
वो अब बादल सा बन गया है
घर छूटा आसमान पकड़े है
ज़मीं पे बिखर के जमीं बन गया है ।

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7 APR AT 22:15

एक चेहरा है उदासी के आईने में
दर्द गहरा है उदासी के आईने में ,

दृश्य भी अदृश्य रहता है यहाँ
काल्पनिक डेरा है उदासी के आईने में,

उससे कुछ छुपाया नहीं जाता है
सच का सेहरा है उदासी के आईने में,

जो भी देखता है कायल हो जाता है
कोई जादू ठहरा है उदासी के आईने में ,

यहाँ आते वक्त धीरे गुज़रता है
वक्त का पहरा है उदासी के आईने में ।।



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26 JAN AT 9:34

विविधताओं में भी एक तन्त्र हैं
एक राष्ट्र एक ही मंत्र हैं
एक डोर में ही पिरोये हैं
हम सवर्ण राष्ट्र हम गणतंत्र हैं ।

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18 JAN AT 17:44

अस्तित्व की तलाश में खोये इंसान
सब कुछ भूल जाते हैं
रिश्ते-नाते अपने-पराये
सब छूट जाते हैं ,
अस्तित्व की तलाश में भागे इंसान
कहीं पहुँच नहीं पाते
बस रास्ते बदलते रहते हैं
और बदलते रहते हैं अपनी शक्लें ,
अस्तित्व की तलाश में इंसान को
सच से सामना होता है
वो सारे झूठ और सारी चालाकियाँ
हार जाती हैं कुछ काम नहीं आता
सब सच जब सामने आ जाता है
सब पर्दे गिर जाते हैं
और अंत मे बस अस्तित्व ही बचता है ।

- राही


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4 JAN AT 22:13

जब बात छुपा ली जाती है
सीने में कहीं दबा ली जाती है
उथल पुथल तो होती है
जीवन में फिर समा ली जाती है ,
सब दर्द बाहर नही दिखता है
अंदर अंदर कुछ तो रिसता है
खुशियों सबको मिल जाती पर
ग़म का सबसे ही रिश्ता है ,
कैसे किसको कब मिलना है
पहले से सब तय होता है
बाहर से सब सजते सजते
अंदर ख़ालीपन रोता है ,
जब बात छुपा ली जाती है
अक्सर ऐसा होता है
दिल में हूक सी उठती है पर
चेहरा हर पल हँसता है ।


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24 SEP 2023 AT 15:46

कहाँ आकर के आज हम मिले हैं
यहाँ अब ग़म के ही सिलसिले हैं,

मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं है
यहाँ अब ख़ुद से ही सारे गिले हैं,

इतने पास आके भी ये दूरियाँ हैं
कई जन्मों के जैसे फासले हैं ,

हमने अब तक भला क्या किया है
हमारे पांव में कहाँ आवले हैं ,

इस शहर में कहाँ जा बसे हम
इस शहर में भी सूनी महफ़िलें हैं ।।

- राही



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14 SEP 2023 AT 11:02

गाँव से भाग शहर आ जाते हैं
शहरों में गाँव मर जाते हैं ,

ना घर ना ही घाट के रहते हैं
वो तो बीच मे कहीं ठहर जाते हैं,

हर रोज सूझती है तरकीबे कई
हर रोज़ फैसले बिखर जाते हैं ,

कौन सुनता है बूढ़े मा बाप की
अब बच्चे कब अपने घर जाते हैं ,

इस तरह का जीना भी क्या जीना है
लोग रोज जीते जी मर जाते हैं ,

मेरा तेरा सबका एक ही फ़साना है
धीरे धीरे सारे ज़ख्म भर जाते हैं ।।

- राही

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10 SEP 2023 AT 19:39

एक इतबार बचा रहना चाहिए
सुस्ताने के लिए
सूकून भरी एक चाय की चुस्की के लिए
बारिश की बूंदों को झरोखे से देखने के लिए
कुछ ज़रूरी ग़ैर ज़रूरी कामों को टालने के लिए
एक इतबार बचा रहना चाहिए
ज़िन्दगी में वापस लौटने के लिए ,

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