दरख़्ते कहने लगी
कौन सोखेगा पराबैगनी और कार्बन
कहा से लाओगे शुद्ध हवा
सड़ने से पहले मुझे पहुँचा देना
किसी निर्धन के यहां
ताकि उसकी छज्जो पे
घोसलें बना सके ये पंक्षिया।
उस टहनी पर एक ही पत्ती थी
जो हरी थी
मेघो को अपनी ओर खींचते
हिल रही थी
जो कुछ ही पल में टूट कर
मेरी श्वासनली के
करीब से गुजर गई थी।
शहर के उस उजाड़ रास्ते में
मैंने देखा था एक पेड़!
- राहुल प्रसाद 'राह'
30 JUN 2021 AT 3:02