पुरुषों के लिए
कही नही है ऐसा आंगन
जहां वे निःसंकोच लौट सके!
वे चलते रहते है निरंतर
एक पुत्र,एक पति, एक भाई
एक पिता
और घर समाज का अगुआई बनकर
पुरुषों के लिए
कही नही है आरामगाह!
अपने कंधों पर
जिम्मेदारियो की गठरी
ढ़ोते लुढ़कते आगे बढ़ाते
रहते है जीवन पटरी
मगर खुद के लिए
कभी ठहर नही पाते
पुरुषों के लिए
कही नही है विश्रामालय!
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यात्रा करते हुए
कुछ लोग मिलते हैं
जो जाति-पाती, अगड़ी-पिछड़ी
या मजहबी बात नहीं करते
ये लोग
लड़के-लड़कियों में
भेदभाव,दहेज की जिक्र भी नहीं करते।
हां ये लोग
आर्थिक सामाजिक रूप पिछड़ों
को मुख्य धारा में जोड़ने की विचार
जरूर रख जाते है।
यात्रा
समाप्त होती है
मैं ट्रेन से उतर कर
घर आ जाता हूँ।
गांव,चौराहे और राजधानी में
फिर वही सब ठहरा पाता हूं
उनके विचार याद आते है
किंतु वे फिर कभी नहीं दिखते
शायद उनके भी
असाकार सपने
सिर्फ यात्राएं करती हैं!-
तू चला है...
सत्य की राह
दिशायें खिंचती रहेगी
तुम्हे चारो तरफ
मगर सच के साथ ही
तुम्हे है अड़िग रहना।
विपदाएं झकझोरती रहेगी
मगर तुम्हे झुकना नही है
शहर,देहात
जहां से खड़े हो
खड़े रहना।
तुम्हे बैठना नही है
पीछे,आगे,मध्य
जहां पर खड़े हो
खड़े रहना
न कुछ हो सका
तो भी अड़े रहना।
तुम्हे डरना नही है
अँधेरो से लड़ना
ठूठ बन जाना
जड़ों से उग आना
तुम्हे ही है
सच,शांति,सद्भाव
धरती से जोड़े रखना।
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किसी वस शून्य को भरने के लिए
जोड़ा गया संबंध
विरले ही जीवन जीवंत करते हो
लेकिन समान्यतः यह जन्म देता है
एक और शून्य को
जो पहले से भी अधिक बड़ा शून्य होता जाता है
और जीवन शून्य में तब्दील।-
दरख़्ते कहने लगी
कौन सोखेगा पराबैगनी और कार्बन
कहा से लाओगे शुद्ध हवा
सड़ने से पहले मुझे पहुँचा देना
किसी निर्धन के यहां
ताकि उसकी छज्जो पे
घोसलें बना सके ये पंक्षिया।
उस टहनी पर एक ही पत्ती थी
जो हरी थी
मेघो को अपनी ओर खींचते
हिल रही थी
जो कुछ ही पल में टूट कर
मेरी श्वासनली के
करीब से गुजर गई थी।
शहर के उस उजाड़ रास्ते में
मैंने देखा था एक पेड़!
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मत काटो इन दरख्तों को!
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गांव सुनते ही
आते हैं ख़्याल
घोसलों से लदी पीपल
मॉनसूनी बयार
स्वागत की आद्रा गीत
पहाड़ो में रंग उड़ेलती इंद्रधनुष
निर्झर दौड़ती नदियां
लबालब तालाब
हरी भरी पगडंडी पर
मुस्कुराते किसान।
पर जाते हैं जब गांव
पाते है नदारद गौरैया
चारे को तरसता मावेशी
अस्तित्व से जूझती नदियां
खाली पड़े पोखर
ठूठे रूठे आम,
सूखी दरदरी खेत
वीरान पगडंडी पर
सिसकता किसान!
क्यो उजाड़ रहें वनों को
इनकी जड़ो से सृष्टि आबाद है
यह वात है, जल है
समद कालचक्र है, कल है
जीवन है और जैव संतुलन भी है।
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दुःख में नमक छिड़के
सुख में उन्हें गुर्राना है
सोच समझकर दुख-सुख बाट 'राह'
स्वार्थ का जमाना है।-
उम्र के ऐसे पड़ाव पर होते हैं जब आपको गुजरने वाला हर दिन एक नया अनुभव देकर जाता है। आपके करीबी अपनी महत्वाकांक्षाओं के पूर्ण न होने के कारण आपसे दूर होने लग जाते हैं। आप जिन लोगों पर आंख बंद करके भरोसा करते होते हैं वो आपको धोखा देने और नीचे धकेलने में जरा भी हिचकिचाते नहीं है और आप चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते हैं क्योकि आप उनसे स्नेह प्रेम कर रहे होते है उन्हें सदैव खुशहाल देखना चाहते है।
व्यक्ति का सरल और निश्छल स्वभाव उसे लोगों में पॉपुलर बनाता मगर इसी स्वभाव के कारण उसे धोखा देना आसान भी होता है।आप एक वक्त के बाद खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं,
अपने बेशकीमती समय, ऊर्जा,मेहनत की हजारो-लाखो गाढ़ी कमाई खर्च करने बाद भी एक चव्वनी न देने का इल्जाम सहते है।
आपको खुद पर हंसी आती है।इतना सब होने के बाद आप उनसे विवाद नही रखना चाहते क्योकि आपने जीवन को प्रेम सद्भाव के राह जीया है। लेकिन इन सब कृत्यों के फलस्वरूप
आप डरते हैं लोगों पर भरोसा करने से,खुद के ठगे जाने से,आपके एहसास एक एक कर मर रहे होते हैं और एक दिन एहसासविहीन इंसान बन जाते हैं जो कि समाज को पूर्णरूपेण सभ्य समृद्ध नही होने देती।
परिवर्तन कीजिए,भावनात्मकता की जगह जीवन को प्रेक्टिकली भी जिए लेकिन आपको हारना नही हैं अपने आपको उस इंसान में तब्दील नहीं करना है जो आप असल में है ही नहीं। आप कुछ ही है जो सभ्य समाज के स्तम्भ है।-
इंसान जीवन में कभी कभी उस निम्नतम बिंदु पर होता है जहां मन की बातें करने के लिए कोई अपना नजर नहीं आता।
....तमाम एहसासों और व्यथाओँ को अन्दर समेटे हुए, एक दृढ़इक्षा उत्प्न्न कर खुद ही जीवन की डगर पे आगे बढ़ना होता है।-
गांव में देखा है अक्सर
बहुधा लड़ाईयां
दिमागी नकारात्मकता की वजह से होती है
बिना कारण के भी।
बुढापा होते होते शायद ही वे समझे
जीवन विवाद से बदतर और
परिवर्तन से बेहतर होता है
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