झील सी उसकी आंखों में
समंदर सा मैं रहता हूं ,
पता कोई पूछे तो बता देना
मैं उसकी आंखों में बहता हूं-
किनारों से समंदर अब लहरों में कैद हो गया
घर से आजाद हुआ तो कमरों में कैद हो गया
परिंदों की तरह आजाद घूमता था जो शख़्स
नौकरी के खातिर अब शहरों में कैद हो गया-
तुझको देख कर दूल्हों का भी सेहरा उतर जाता है
पर मैं किसी का नाम लूं तो तेरा भी चेहरा उतर जाता है
झगड़ भी लू तो सुलह की जरूरत नहीं पड़ती तुझसे
तू जो देख ले हंस के तो मेरा सारा गुस्सा उतर जाता है
तेरे हो गए हैं इस कदर, अब हम भी तो देखें
ऐसे कैसे इस समंदर में कोई दरिया उतर जाता है-
कभी मैं तस्वीर देख कर लिखता हूं
तो कभी लिख कर तस्वीर देखता हूं
मिलती हैं हु-ब-हु शक्ल लिखावट से
उसको मैं कुछ यूं लिख कर देखता हूं-
ख़्वाब को सच कर जाओ
तुम मुझको पूरा कर जाओ
सूख गए नैनों से अश्क हमारे
तुम अब तो मिलने आ जाओ
हालत को तो मेरी समझो तुम
चाहत को तो मेरी समझो तुम
शब्दों का समंदर अब सूख गया
ख़ामोशी को तो मेरी समझो तुम
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तुम यहां तक आई हो अब लौट गई तो बुरा लगेगा
मुझको अपना बताती हो भूल गई तो बुरा लगेगा
जानती हो तुम्हारे साथ ही मुझको अच्छा लगता है
मेरे बिना तुम्हें अच्छा लगा तो मुझे बड़ा बुरा लगेगा
हर पल यही कहती हो मेरे लिए पागल हो गई हो
जाने अनजाने में कभी संभल गई तो बुरा लगेगा
छोड़ दिया मैंने सबको पास तेरे आने के लिए
यार मुझको ही कभी तू छोड़ गई तो बुरा लगेगा
यदि कभी नजर मिली तेरी किसी नजर से और
यार अगर ना झूकी तेरी नज़र तो मुझे बुरा लगेगा-
अगर हो जाए मौसम सुहाना तो मैं भी बहक जाता हूं
जो हवा छू कर तुझको आती है उससे भी मैं महक जाता हूं-
सोप दिया मैनें ख़ुद को तुझको
जब से मिली है तू मुझको
हो कर तेरा अब तो मेरा
होश नही रहता है मुझको
बातो से मुलाकाते बढ़ती, फिर
मुलाकाते करती पागल मुझको
पिघलाती मुस्कान चेहरे की तो
बहकाती है तेरी जुल्फें मुझको
जाने की तुम ज़िद ना करना
तेरे बिना ना रहना मुझको-
हफ़्ते में इतवार आना अखरता है
इश्क़ में दूजा यार आना अखरता है
मैं चाहता रहूं दिन-रात तुम्हें
लेकिन तेरा घर जाना अखरता है-
सजाता सपना देखता ख्वाब तेरे नाम का
हो गया दीवाना ये लड़का तेरे नाम का
ये कैसा जाम पिलाया तुने तेरे इश्क़ का
हर पल में तो जाप करूं सिर्फ तेरे नाम का-