एक शायरी लिखी है,
कभी मिलोगे तो सुनाऊंगा!
तेरी सूरत साफ शीशे की तरह
मेरे दामन में दाग हजारों है
तू नायाब किसी पत्थर की तरह
मेरा उठना बैठना बाजारों में है !
तेरी मोजूदगी का एहतराम कर भी लूं,
जब होगा रूबरु तो ये ज़ज़बात कहाँ छुपाऊंगा!
एक उमर लेके आना
मैं खाली किताब ले आउंगा
तोड़ कर लाने के वादे नहीं
मैं अपनी कलम से सितारे सजाऊंगा!
मेरी सब्र की इंतहा पर शक कैसा
मैंने तेरे आने जाने पे ता उमर लिखी है,
ज़मीन पे कोई खास नहीं मेरा
तू एक बार क़ुबूल कर में अपने
गवाहों को आसमा से बुलवाउंगा!
एक शायरी लिखी है,
कभी मिलोगे तो सुनाऊंगा।
कई रात गुजारी है अंधेरे में
तुम थोड़ा सा नूर ले आओगे
मेरे तकिये पीले हैं आंसुओं से,
क्या तुम मुझे अपनी गोद में सुलाओगे!
सुना है बाग है तुम्हारे आंगन में,
मेरे ला हासिल बचपन को वो झूला दिखाओगे ??
मैने खोया है अपनी हर प्यारी चीज को,
में अपनी क़िस्मत फ़िर भी आजमाऊंगा
एक शायरी लिखी है
कभी मिलोगे तो सुनाऊंगा ।-
चल तेरे काम को आसान किये देते हैं..!!
हां शैाक थोडी है, मजबूरी है भाई उसकी
सवाल उसके बाप की इज्जत का है ,
हॉ बात जरूर देर से समझ आती लेकिन क्या ही
फर्क पडता है ,उस बात से की तबतक एक मॉ का
बेटा भी जीते जी दफन हो चुका होता है
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लड़के जोत दिए गये
जिम्मेदारियो में
जैसे बैल लगा दिये जाते हैं खेत में
और उन्होने अपनी ख्वाहिशे
अपनी मजिंल और उम्मीदो
के तले पाट दी
और इन सब के बाद भी
उन से अपेझा रखी गई
कि वो दुनिया को खुश दिखे रखे-
रोज वो ख्वाब मे आते है गले मिलने को
मै जो सोता हूँ तो जाग उठती है किस्मत मेरी-
मै शक्कर तो तुम मिठास बन जाओ
सुबह की पहली चाय संग कुछ खास बन जाओ
मेरे गमो मे खुशियां तुम बे-हिसाब बन जाओ
सिमटती सी मै चादर सा और तुम शराब बन जाओ
मेरी सुबह की गहरी नींद मे तुम ख़्वाब बन जाओ
मै चुप रहू और तुम जवाब बन जाओ
मै खिडकी खोलू और तुम बरसात बन जाओ
मै शक्कर तो तुम मिठास बन जाओ
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प्रेम नही मिटता कभी भी
प्रेम बस सिकुड जाता है
ह्रदय के एक कोने में
ह्रदय के उस कोने मे
बेतरतीबी
और परेशान सा प्रेम
जीवित रहता है हमेशा
जैसे इन बडें शहरो के
एक कोने मे
जीवित रहता है हमेशा
एक गाँव-
जिस पल उन्हें खोने का डर लगता है
उस पल सर झुक जाता है
माफी मे
फकीरी मे
चाहत मे
वो जो खुदा है, ले ना ले उन्हें मेरी ऑखो से
इस ख्याल से ऑखे कसकर बंद कर लेता हूँ
घबराहट मे
इबादद मे
मोहब्बत मे-
तुम मेरी वो जीत हो
जिसे मैने साै दफा हारने के बाद जीता था
आैर तुम मेरे हथेली की वो लकीर हो
जिसका जिक्र मेरी तकदीर मै ही नहीं था
तुम खुदा का दिया हुवा वो अजीज तोफहा हो
जिसकी मंजूरी को मेरी किस्मत ने नकारा था
और तुम किसी खूबसूरत पेड़ के पत्तो सी
जिसे पतझड के मौसम ने संवरा था-
एक बचपन का जमाना था
जिसने खुशियो का खजाना था
चाहत चॉद को पाने की थी
पर दिल तितली का दीवाना था
खबर न थी कुछ सुबह की
न शाम का ठिकना था
थक हार के आना स्कूल से
पर खेलने भी जाना था
मॉ की कहानी थी
परियो का फसना था
बरिश मे कागज की नाव थी
हर मौसम सुहाना था
हर खेल मे साथी थे
हर रिश्ता निभाना था
गम की जुबान न होती थी
ना जख्मो का पैमाना था
रोने की वजह न थी
ना हसने का बहाना था
क्यो हो गये हम इतने बडे
इससे अच्छा तो वह बचपन का जमाना था
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खुद मे ही उलझा
खुद से ही परेशान हूं
ना किसी को चाहता
ना किसी का अरमान हू्ं
बिखरा हूं थोडा,
थोडा सा बेजान हूं
खुद से ही बेखबर हूं जैसे
खुद ही अंजान हूं
हाल में देख के खुद का
मै भी हैरान हूं
कोई जो पूछे मेरा हाल
वहॉ बेजुवान हूं
खुद मे ही उलझा
खुद से ही परेशान हूं-