... इश्क किया उल्फत ली, दिल दिया हां जुर्रत की,,
इल्म किया शायराना तो फिर क्या
कम से कम जिल्लत तो ली,,
जुल्म किया क्या मैंने कोई
जो तुमने मुझसे मेरी जन्नत ली,,
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दो पल की खुशियाँ, और जिन्दग... read more
बेहतर नहीं समझती अब दुनिया मुझे,, शायद अब में बेहतर रहा भी नहीं,, एक रोज और .गर मय्यसर मौत से
हुआ तो पूंछुगा कि तेरी फिदरत तो कतई बेवफा नहीं!
कितनी बार देख मुझे लौट जाती है..! क्या तुझे मुझसे वफा नहीं.!-
...खोया हुआ समय वापस
सिर्फ शराब की दुकान पर
मिलता है..!
शायद एक या दो पैग के बाद..!-
...भागता हुआ मैं,, और दौड़ती हुईं ये सड़के,,
पीछे ढेरों मुझे देख मुस्कुराती हुई इस बेईमान
शहर की अकड़ में तनी हुईं इमारतें!
मेरी दिलचस्पी को तबाह कर गईं!
एक मेरे गांव में हुई थी! आज तक मेरे
जहन में है! जो मुझे फना कर गई!
अक्सर लिखता नहीं हूं! मानसिकता से
ओत-प्रोत पंक्तिबद्ध लेख,,
वो तो आज ड्राई डे था! इसीलिए तूं याद
आई और गुमराह कर गई!
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सुनना सबको नहीं है! बोलना सबको ही है!
इस सुनने और बोलने की सरागोस में हमने
बहुत कुछ सीख कर भुला दिया,
शायद उन्होंने ने भी शिखा कर भुला दिया हो!
पर जब भी वो कम्बखत दिख जाते हैं! या मैं
उन्हें कहीं नजर आ जाता हूं! वो भी घूर कर
नजरें फेर लेते हैं! और मैं भी उन्हें थोड़ा घूर कर
सहम जाता हूं! शायद दोनो ही एक ही फलसफे
पर अडिग रहना चाहते हैं! न वे मुझसे कुछ कहेंगे,
और न मैं उनसे कुछ सुनूगा!
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ज़िंदगी न हुई बहिनचोद लमपाकटा हो गई!
न हमें समझ में आ रही है! न उन्हें!
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अच्छा ब्रांड बहुत बना लिए अब एक ऐसा दारू
बनाओ जिसे पीने से से न आंखे लाल हो,,
न जुबान केशरी,,
बस दिमाग पे आधी अधूरी चढ़े,
न बीवी को दिखे व्यवहार खिचाली!-
कविताएं कभी पूरी नहीं होती कहानियां कभी अधूरी नहीं होती हर एक कहानी पूरी होती है और कविताएं कभी पूरी नहीं होती कविताओं का मार्मिक स्वभाव है अधूरी रह कर ही पूरे होने का ख्वाब दिखाती हैं दरअसल ऐसा नहीं है कविताएं तब तक कभी पूरी नहीं होंगी!जब तक पीढ़ियां मर नहीं जातीं!
जंगल प्यारे सुनहरे पौधे नहीं मर जाते!
दरवाजे मर जाएंगे,, खिड़कियों का ताजी हवा में सांस लेना रुक जाएगा! मकान मर जाएंगे लोग मर जाएंगे, रीति रिवाज सारे मर जाएंगे
मर जाएंगी पुरानी सड़कें मर जाएगा एक दिन वह किला जो दो सौ साल से जिंदा है!
पर कविताएं कभी नहीं मरेगी क्योंकि उनमें प्यार और नफरत दोनों ही जिंदा है! कहानियों में तो सारे किरदार शर्मिदा है! शर्मिदा है राजा और रानी इसी शर्मिंदगी मर मर गयीं कितनी ही जवानी!
कविताओं की जवानी का सूरज कभी नही ढलता
कविताओं का बुढापा नहीं होता,
कविताएं बस अमीबा की तरह बिना कोशिकाओं कर होती हैं! जो होती सो होतीं है!-
ओह..रे सपने मर क्यों नहीं जाता
तूँ जाकर कहीं!
दिमाग के इस कोने से उस कोने तक
के सफर में कहीं !
मेरे सारे इरादों को
तो महज मौत खा गई! तूँ ही रह गया
सहज मुझमें कहीं!!
ओह.. रे सपने मर क्यों नहीं जाता तूँ
जाकर कहीं
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... न जाने कितने अरमानों को खा गए सरगोशी से
जीने वाले,, वो ही जीने वाले जो जबरन मेरे
आका होने हक अदा करने बैठे हैं!
जो बस चले न मेरा तो एक एक से हिसाब लूँ!
उन्हीं का कतरा उन्ही को बेंचू,,
महज इस बारिश की आखिरी बूंद तलक उनकी
तानाशाही मुँह तोड़ जबाब दूँ!
महज मंजर कातिल हुए बैठा है!
शायद मेरा रब मुझसे रूठा है,, औकाद नहीं
वर्ना गुफ्तगु ऐ कानाफूसि की,,
वो खंजर लिए बैठे हो तो में, इस तसरीफे महल
में तलवार लिए अब भी सहमा ही सही
पर बैठा हूँ!
-Rahul S. Mishra
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