Rahul Lal   (राहुल लाल 'भानु')
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#23YearOld
मेरी कविताएं -> मृगतृष्णा
Found each from imagiNATION.
Joined 3 April 2017


#23YearOld
मेरी कविताएं -> मृगतृष्णा
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8 MAY 2021 AT 15:03

है मौका अभी जिंदगी
अभी हार कहा मानी है

तेरी लहरों से लड़कर ही
मेरे सपनों की जिंदगानी है

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6 MAY 2021 AT 9:23

देश की बागडोर, है हाथों में जिनके अभी
वो हाथ जोड़े बैठे है, उनकी भुजायें है रुकी

युवा की पुकार को, युवा की चीत्कार को
उसकी सब अवहेलना करने को तैयार है
चुनाव और राजनीति में जो डूबे हो तुम सभी
की सुनो मेरे देशवासियों, ये हमारी ही हार है

दाढ़ी की सफेदी से ज्यादा सफ़ेद आज है चिताएं
धरती उनको समेटे न, अग्नि उनको जला न पाए
ये कैसा विध्वंस है, ये कैसा आतंक है
और युवा जो है चुप खड़ा, उसे कोई कैसे बताये?

की उसके भविष्य की कल्पना में वो ही आज पीस रहा
हथेलियों पे जान अपनी, वो किसके नाम ही कर रहा
कभी ऑक्सिजन, कभी प्लाज्मा, कभी अस्पताल
वो मदद है कर रहा, उसकी पहचान नहीं है फिलहाल

ये किसे दिया है हमने देश को, ये कैसे राजनेता है
भूत और भविष्य में बंधे, ये मृत्यु के विक्रेता है
विज्ञान की अवहेलना, ज्योतिष का क्यों विस्तार है?
क्यों युवा के भविष्य में अंधकार ही अंधकार है!!

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29 APR 2021 AT 10:10

सूरज की बाली हाथों में
हाथों में उसके फूल और ताब
छूने से उसके मरे मरुस्थल
छूने से उसके सच होते ख़्वाब!

प्रकृति की बिटिया है वो
वो हँसती तो कली लहराये
प्रकृति की ऋतुओं में है वो
वही सावन सा दिल को भाए

खुशियों के फूलों का गुच्छा बन
वही ग्रीष्म की शीतल छाया है
वही सूरज की पहली किरण
वही संजीवनी की अद्भुत माया है

नटखट है नख़रे भी है
और ज़िद की सच्ची सूरत है
सूरज की बाली हाथों में
वो ताब और ख़्वाब की मूरत है!

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28 APR 2021 AT 7:15

लगता था तेरे बिन जीना मुश्किल होगा
तोहफा-ए-जिंदगी माना था जिसको
उसके रुख़सत होने पे दिल "नाराज" तो है!

पर ए दिल मेरे सुन ओ बे-ख़बर
वो शख्श तेरा अजीज हमसफर न बना
तेरा मुस्तक़बिल न सही पर "आज" तो है!

और ढूंढ लाएंगे फिर खुशी के बहाने
सपनों के समंदर से कुछ नए अफ़साने
की दिल में तेरे छुपे अब कई "राज" तो है!

और जिसने जाना मुकम्मल किया है
उस पंछी से अब उम्मीद न रख हमनशीं
दिल-ए-नादान न सही, "बर्बाद" तो है!

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27 APR 2021 AT 5:17

मुद्दतों बाद फिर ये ख़्याल आया है
जिंदगी कुछ नहीं बस पुतलियों की कहानियां है

जिनके धागों के कलाकार नहीं दिखते है
उनकी नादानियाँ है, उनकी निशानियां है

तुम ढूंढते हो फरिश्तों को अक्सर
और तुममे बहती इश्क़ और रश्क़ की रावनियाँ है

जिनकी यादों में गुम रहते हो अक्सर
उनके जाने से अब देखो कितनी विरानियाँ है

जिंदगी कुछ नहीं बस पुतलियों की कहानियां है
कुछ मेरी नादानियाँ है, कुछ तेरी निशानियां है!

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26 APR 2021 AT 12:12

मोहब्बत बांटते हो, वफ़ा करते हो?
अरे क्यों खुद से ही ये दगा करते हो?

किन्हें याद रहती है तुम्हारी राहतें?
और तुम हो की सब से ही इल्तिजा करते हो?

कोई सितारों में गुम है, कोई अपना चाँद ढूंढता है
और तुम हर हमनशीं पे रेख़्ता करते हो?

पूछना भूल जाते है जो अक्सर हाल तुम्हारा
तुम फिर भी उस नाज़नीन की दवा करते हो?

बड़े आला अहमक़ हो 'भानु' तुम अपनी दुनिया के
वो सीने में आग करते है और तुम उन्हें रिहा करते हो?

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29 MAR 2021 AT 8:21

मीठी मीठी बोल सखी, और रख रंगों को संग,
फ़ागुन आया है अब, हो के मस्त मलंग।
मुझपे भी तू डाल सखी, अपने प्रेम का रंग,
बन मैं भी छैल-छबीला, खूब मचाऊं हुड़दंग।।

हो रघुबीरा की होली, हो कृष्ण की निभाई रीत,
गोपियों की रासलीला, और सुदामा सा हो मीत।
आज मिटे भेद सभी, आज तो बरसे प्रीत,
यही होली की चासनी, यही होली की रीत।।

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17 MAR 2021 AT 15:46

दरिया भी जरूरी है लेकिन
समंदर भी जरूरी है!
अरे बहते हुए राही,
ठहरना भी जरूरी है

गर गुमां है तुम्हें
अपनी रवानी का,
सुनो, समंदर भी सिकंदर है
मगर अपनी कहानी का!

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13 MAR 2021 AT 17:46

ख्वाबों के शहर की
असीमित दीवारों पे लिखे
अनगिनत अनिश्चितताओं में
असम्भव तो कुछ भी नहीं,

किन्तु,
क्या तुम्हें जो चाहिए
वो यही ख़्वाब है?
ये सवाल है,
यही जवाब है!

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6 MAR 2021 AT 11:57

थका हूँ, हारा हूँ,
पर मृत्यु से पृथक गूंजता,
मैं इंकलाब का नारा हूँ

शीश उठा के चलता जाऊं
मैं स्वयं गंगा की धारा हूँ
चट्टानों के पथ में किन्तु
अब मैं नहीं बेचारा हूँ

और सवालों का है कौन यक्ष तू?
मैं नहीं युधिष्ठिर सा हारा हूँ
अब मुझे नहीं अंधकार की चिंता
मैं खुद ही धुर्व सितारा हूँ

थका हूँ, हारा हूँ,
पर मृत्यु से पृथक गूंजता,
मैं इंकलाब का नारा हूँ

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