जिंदगी भी कम पड़ जाती है ग़ालिब किसी को भूलने के लिए चहरे तो बदलते रहते हैं पर वो नज़र तुम्हें ढूंढते रहती है फिर से सच्ची मोहब्बत और अधूरी मोहब्बत पूरी निभाने के लिए ।।
खुद को जबसे मोहब्बत के चीता में जलाया है ग़ालिब तबसे रूह लिए भटकते हैं कोई मुक्ति देने वाला नहीं मिलता इन मोहब्बत के यादों से हमें ..............।।।।।।।।।
इस दिल के कितने टुकड़े हुए हैं ग़ालिब तेरे इंकार से मना तेरे लायक़ नहीं हम ना तेरे मोहब्बत के हकदार हैं हम लेकिन तुम्हारी मोहब्बत कोन सी सच्ची है हमें भी तो बताओ दिल तोड़ने वाले कब से मोहब्बत निभाने का वादा करने लगे ।।