rahul kumar   (राहुल कुमार)
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Joined 15 June 2018


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Joined 15 June 2018
17 FEB 2019 AT 10:20

बचपना ठीक से गया भी नहीं,
ख़ाब मंजिलों के पलने लगे है।
किताबों के पन्ने फटे पड़े है,
अब तालीम जिंदगी से लेने लगे है।

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3 JAN 2022 AT 14:51

ढूंढ रही हो तुम मुझे
जनवरी के पहले हफ़्ते में,
रह गया पीछे मैं
दिसंबर के आख़िरी हफ़्ते में

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27 DEC 2021 AT 20:30

किसी के हक में चाँद हो
किसी के आफ़ताब हो,
तुम दिखो जहां
वह बस मेरा ख़ाब हो।

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24 DEC 2021 AT 14:41

सब कुछ निसार किए बैठे हो
खुद को बर्बाद किए बैठ हो
ज़हर भी न दे वो तुम्हें मुड़कर
मौत जो उसके नाम किए बैठे हो

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21 OCT 2021 AT 0:29

बुझ रहा है जो लौ
दिये में तेल डाल दूं
टूटती सांसों से
सांसे जोड़ दूं
कहो...
बेरंग हो गया हो
आसमां अगर तुम्हारा
इंद्रधनुष-सा रंग घोल दूं!

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11 OCT 2021 AT 21:57

इक गुजारिश तुमसे करती है
मेघ बनाकर भले तुम न बरसो
राही का प्यास बुझे खैरात मांगती है



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10 OCT 2021 AT 21:06

तुम थी वक़्त के साथ बदल गयी,
मैं था वक़्त रहते संभल न पाया।

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9 OCT 2021 AT 15:20

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4 OCT 2021 AT 18:10

तुम जो हो तो अच्छा है
तुम जो न होती तो अच्छा होता
तुम जो हो तो अधूरे ख़ाब है
तुम जो न होती तो स्याह रात होता।

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2 OCT 2021 AT 18:42

उफान हो जो विचारों में तो
इंकलाब एक दिन ज़रूर आएगा
हौसला रख,विश्वास कर खुदपर ए बंदे
फतह कर आज,कल सलाम करेगा।

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