Rahul Kumar Singh  
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Delhi, India
An engineer by education.
Joined 28 July 2019


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Joined 28 July 2019
12 JAN 2021 AT 10:23

वादे उतने ही करो जो पूरा कर पाओ
इश्क़ में चुनाव बार-बार नहीं आता।।

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31 DEC 2020 AT 23:32

बीते साल हम सबकी मुखाकृति हमारे आधार कार्ड की फोटो जैसी रही। बिना किसी भाव, बिना किसी चमक के, बिल्कुल फीकी। मानो किसी ने आँख दिखाकर कैमरे को देखने बोला हो। ऊपरवाले से प्राथना है की नववर्ष में आप सबकी मुखाकृति आपके फ़ेसबुक प्रोफइल फोटो जैसी हो। खिलखिलाती हुई, सबसे अच्छी, चमक से भरी।

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23 DEC 2020 AT 15:57

कुत्ते, बिल्ली का जाड़े से कांपते-कांपते रोना
अशुभ है ये!! बोल कर मस्त रजाई में सोना।
बस यहीं तो है... इंसान का जानवर होना।।

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16 DEC 2020 AT 11:48

रिक्शा को कार से दिक्कत
कार को साइकिल से दिक्कत
मोटरसाइकिल वालों के बसों से दिक्कत
पैदल वालों को गाड़ियों की पो पो से दिक्कत
उसे ट्रकों की चौंधिया देने वाली रोशनी से दिक्कत
इसे तेज़ रफ़्तार में सनननन की आवाज से दिक्कत
उनको खिड़की पर सामान बेचने वालों दिक्कत
इनको ताली मार दुआ देने वालों से दिक्कत
ऊपरवाले के नाम पर मांगने वालों से दिक्कत
भीड़ में हताश खाकी की बेबसी से दिक्कत
खुद से जो ऊपर हैं उनसे दिक्कत
खुद से जो नीचे हैं उनसे दिक्कत
सड़क पर सभी, खुद के लिये..
सही हैं, भले हैं, विनम्र हैं, आदर्श हैं।
बाकी जितने बचें वो ठहरे... दिक्कत!!!!

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14 NOV 2020 AT 23:35

दिखता वही पहले
जो देखना चाहो।
दो बुझे दिखे
वो भी सही।
जो रोशन दिखे
वो भी सही।।

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8 OCT 2020 AT 22:37

स्टेशन के कोने पर भीख मांगती बुढ़िया
साथ में उसके बैठी रहती उसकी छोटी गुड़िया।
आंखों में दो-चार निवालों की रहती उनकी चाहत
बिस्कुट के पैकेट से लेकिन दो घंटो ही राहत।
इसके उसके जिसके तिसके नाम पे मांगे सिक्के
भूखे को तो जो भी दे दे सबपर मारे तुक्के।
ईश्वर अल्लाह इसके खातिर मानो तो सब एक हैं
पंडित देदे मुल्ला देदे दिलाने वाला एक हैं।
पैर पकड़ के पैंट खीचती खाना माँगती दोनों
रोटी छोड़ बस डाँट-डपट दुत्कार हैं पाती दोनों।
पैसे वालों को तो जैसे घिन आती हो इनसे
नाक मूंद कर आंख चुराकर तेज़ भागते इनसे।
नेताजी का भाषण सुन लो गरीबी ख़त्म करेंगे
पिछले वालों के जैसे ये गरीब ही ख़त्म करेंगे।
प्लेटफार्म को साफ हैं रखना और ये ठहरे कूड़े
लात मार कर डंडे चलाकर इन्हें हटाओ पूरे।
पुलिस वाला दोनों पर हैं रोब दिखता ऐसे
भीख मांगना चोरी से भी बड़ा अपराध हो जैसे।।

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6 OCT 2020 AT 19:32

आज , कुछ बच्चों की आंखों में
बीमा,पेंसन और ज़मीनों की जो आशा है।
तुसली-गंगाजल के वक़्त नम आंखों का जो झाँसा है।
अंगूठे को नीला करवा वसीयत का वो इतना प्यासा हैं।
क्या यही पितृभक्ति की परिभाषा है??

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5 OCT 2020 AT 22:34

वो जमाने लद गये
जब मोहब्बत रहे बस,
बाकी जरूरतों की
उतनी जरूरत नहीं।
आज
सिर्फ जरूरतों की ही
जरूरत है
मुहब्बत की अब
इतनी भी जरूरत नहीं।।

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30 SEP 2020 AT 14:24

कमरे के गमले में लगे मनी प्लांट को देख..
बाहर लगे "नीम" ने "बबूल" से पूछा ...
ये बिना पानी के भी क्या हमारी तरह रह सके है?
तूफान जो जड़ से झकझोरे है हमें, इसके करीब भी आया था कभी?
बाढ़ जो एक झटके में हमें उखाड़ फेंके है, सुना भी ना हो शायद इसने।
वैशाख की चिलचिलाती धूप की जलन, इसकी हरयाली छू पायी क्या कभी?
इसे भी नहलाती होगी क्या? बारिश की गोल-मटोल छोटी-बड़ी बूंदे।
ये भी क्या किसी के बुरे वक्त या इलाज़ में काम आते होंगे?
कहाँ लेते पाते होंगे ये अँगड़ाई खुले में, बाहें फैला के आज़ादी से हम जैसी।
काँप सी जाती होगी ये बच्चों को दोलहा-पाती खेलता देख, हमारी डालियों पर।
चिड़ा-चिड़िया प्रणय कहाँ संभव है, इनके कमजोर खूबसूरत लताओं में।
हम जैसे मलंग अल्हड़ होंगे क्या ये भी, मौसम के हर दौर में?
नहीं.. शायद नहीं.... बिल्कुल नहीं!!!!!!
ये कोमल कलियाँ, इन्हें माली के सहारे की आदत होगी
दम तोड़ दे शायद इन्हें वक्त से पानी ना दे तो
खूबसूरत होने के अलावा क्या खास है इनमें?
बस गमले की दुनिया यहीं बढ़ना और यहीं खत्म
मेरी कड़वाहट और तेरी चुभन बेहतर है ऐसे नाज़ुकपन से।।

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1 AUG 2020 AT 23:46

किरदार हैं सब दुनिया की नाट्यशाला के
जो नायक समझ बैठे तब ये अहं आया।।

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