कमरे के गमले में लगे मनी प्लांट को देख..
बाहर लगे "नीम" ने "बबूल" से पूछा ...
ये बिना पानी के भी क्या हमारी तरह रह सके है?
तूफान जो जड़ से झकझोरे है हमें, इसके करीब भी आया था कभी?
बाढ़ जो एक झटके में हमें उखाड़ फेंके है, सुना भी ना हो शायद इसने।
वैशाख की चिलचिलाती धूप की जलन, इसकी हरयाली छू पायी क्या कभी?
इसे भी नहलाती होगी क्या? बारिश की गोल-मटोल छोटी-बड़ी बूंदे।
ये भी क्या किसी के बुरे वक्त या इलाज़ में काम आते होंगे?
कहाँ लेते पाते होंगे ये अँगड़ाई खुले में, बाहें फैला के आज़ादी से हम जैसी।
काँप सी जाती होगी ये बच्चों को दोलहा-पाती खेलता देख, हमारी डालियों पर।
चिड़ा-चिड़िया प्रणय कहाँ संभव है, इनके कमजोर खूबसूरत लताओं में।
हम जैसे मलंग अल्हड़ होंगे क्या ये भी, मौसम के हर दौर में?
नहीं.. शायद नहीं.... बिल्कुल नहीं!!!!!!
ये कोमल कलियाँ, इन्हें माली के सहारे की आदत होगी
दम तोड़ दे शायद इन्हें वक्त से पानी ना दे तो
खूबसूरत होने के अलावा क्या खास है इनमें?
बस गमले की दुनिया यहीं बढ़ना और यहीं खत्म
मेरी कड़वाहट और तेरी चुभन बेहतर है ऐसे नाज़ुकपन से।।
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