Rahul Kumar   (आर्य के लफ्ज़)
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Joined 12 April 2018


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28 JAN 2022 AT 20:00

हम और आप समाज की कठपुतली है।
खुद को आईने में देखकर,
थप्पड़ मारकर खुश है।
अप्रत्यक्ष रूप से
आपके जीवन की रूपरेखा वहीं तय करता है।

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30 NOV 2020 AT 0:01

उनकी झुकी नज़रों की बात ही कुछ और है।

आंखों का वो मस्कारा गजब सितम ढाता है।।

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1 APR 2019 AT 19:30

वक़्त का अपना
एक अलग ही
लिहाज
होता है
शर्माना आए ना आए
कश्मकश
पूरी रहती है।

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23 MAR 2021 AT 8:39

कदमों को तेज़ी से आगे बढ़ा रहे थे,
देशभक्ति के गीत गा रहे थे।
युवा थी मुस्कान उनकी,
जब फांसी के फंदे को गले लगा रहे थे।

इतिहास तो बन चुका था उनका,
हमें आजादी का पाठ पढ़ा रहे थे।
लड़ोगे क्या हमेशा ऐसे ही?
हमें तो कुछ और ही वो बता रहे थे।

डंके की चोट पर कर गए सारे काम,
अंग्रेजो के अरमां कदमों तले
कुचलते जा रहे थे।
देश की मिट्टी में मिलकर,
अमर शहीद कहला रहे थे।

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22 MAR 2021 AT 12:06

"जल" ,
उसकी ना तो कोई संस्कृति है,
ना कोई फैशन है ।
हर शरीर में है वो,
हर शरीर उससे ही रोशन है ।
पी लो चाहे कितनी
बोतल ठंडाई की,
सुकून तो बस पानी
की बोतल में है ।

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20 MAR 2021 AT 8:07

खयालों को रोज रात को
चूमने से क्या होगा।
बेकसूर आंखें,
गुनहगार बन जाएगी,
गर वो सच ना हुए।

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17 MAR 2021 AT 19:40

यूं बिगड़े पड़े है,शामयाने मेरे,
बंजारा बनकर जो लगाए थे।
वो चले गए,
किसी और के शीशे के मकान में,
जिनके लिए,
हम नीेंव रखने आए थे।

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12 MAR 2021 AT 9:42

मुझे तकदीरें बदलने का शौक है।
मै हथेली या माथे की
लकीरों पर विश्वास नहीं करता।।

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9 MAR 2021 AT 20:04

अपनी जुबां सिल कर बैठे हो!
धागा दिया था सजाकर उन्होंने?
या रंगो को पहचान कर,
चश्मा उतार कर सिलते गए।

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6 MAR 2021 AT 19:02

दफ़न हो जाओगे,
सफेद कफन में।
आंखों में रह जाएगा,
बस काला अंधेरा।
ज़िंदगी के रंगीन होने की,
दुनिया सिर्फ बातें करती है।

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