हम और आप समाज की कठपुतली है।
खुद को आईने में देखकर,
थप्पड़ मारकर खुश है।
अप्रत्यक्ष रूप से
आपके जीवन की रूपरेखा वहीं तय करता है।-
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कदमों को तेज़ी से आगे बढ़ा रहे थे,
देशभक्ति के गीत गा रहे थे।
युवा थी मुस्कान उनकी,
जब फांसी के फंदे को गले लगा रहे थे।
इतिहास तो बन चुका था उनका,
हमें आजादी का पाठ पढ़ा रहे थे।
लड़ोगे क्या हमेशा ऐसे ही?
हमें तो कुछ और ही वो बता रहे थे।
डंके की चोट पर कर गए सारे काम,
अंग्रेजो के अरमां कदमों तले
कुचलते जा रहे थे।
देश की मिट्टी में मिलकर,
अमर शहीद कहला रहे थे।-
"जल" ,
उसकी ना तो कोई संस्कृति है,
ना कोई फैशन है ।
हर शरीर में है वो,
हर शरीर उससे ही रोशन है ।
पी लो चाहे कितनी
बोतल ठंडाई की,
सुकून तो बस पानी
की बोतल में है ।-
खयालों को रोज रात को
चूमने से क्या होगा।
बेकसूर आंखें,
गुनहगार बन जाएगी,
गर वो सच ना हुए।-
यूं बिगड़े पड़े है,शामयाने मेरे,
बंजारा बनकर जो लगाए थे।
वो चले गए,
किसी और के शीशे के मकान में,
जिनके लिए,
हम नीेंव रखने आए थे।-
मुझे तकदीरें बदलने का शौक है।
मै हथेली या माथे की
लकीरों पर विश्वास नहीं करता।।-
अपनी जुबां सिल कर बैठे हो!
धागा दिया था सजाकर उन्होंने?
या रंगो को पहचान कर,
चश्मा उतार कर सिलते गए।
-
दफ़न हो जाओगे,
सफेद कफन में।
आंखों में रह जाएगा,
बस काला अंधेरा।
ज़िंदगी के रंगीन होने की,
दुनिया सिर्फ बातें करती है।-
देखो कैसी मजबूरी आयी है,
हर चेहरे पर उदासी छाई है।
खिल रहे है नेताओं के चहरे,
गरीब की रोटी पर बन आयी है।-
मंजिल तो पहले ही,
रुखसत हो गई मेरे ख्वाबों से।
अब तो बस कदम चल रहे है,
देखो ये "मुफलिसी" कहां तक ले जाती है।-