Rahul Kumar   (वो फिर आएगी)
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Joined 11 June 2017


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20 JUL 2019 AT 2:00

अनुमापन || Titration
( अनुशीर्षक में पढ़ें )

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18 JUL 2019 AT 16:59

ज़िन्दगी को मुफ़लिसी में देख इतना लिख दिया
घर लिखा फुटपाथ को , रोटी को सोना लिख दिया

आशिक़ों की एक आदत है खराब ये क्या कहें
गए जहाँ भी नाम महबूबा का अपना लिख दिया

यूँ तो लिखने को है कितने लफ्ज़ ही इस दुनिया में
लफ्ज़ बस "माँ" लिक्खा, हमने यूँ ज़माना लिख दिया

है ज़रूरी प्यार मुहब्बत काटने को ज़िन्दगी
चाहिए जीने को पहले आबो-दाना लिख दिया

छोड़कर तुम जो गई इतना चलो सह लेते, पर
ये उदासी को मिरा किसने ठिकाना लिख दिया

पूछा उसने क्या लिखोगे बाद मेरे तुम सनम
याद आना औ' लबों का कंपकंपाना लिख दिया

लिखना ही था लिख दिया मैंने "वो फिर आएगी" ,औ'
मुस्कुराकर फिर वही किस्सा पुराना लिख दिया ।

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17 JUL 2019 AT 1:25

मृत्यु के साथ प्रयोग । Experiment with Death

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14 JUL 2019 AT 23:07

समानांतर ब्रह्मांड | Parallel Universe
(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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13 JUL 2019 AT 20:20

"ज़रा तस्वीर से तू निकल के सामने आ मेरी महबूबा"
( अनुशीर्षक में पढ़ें )

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13 JUL 2019 AT 0:11

ज़िन्दगी से मिरी तुम क्या चली गई
मेरे हक़ की सारी दुआ चली गई

मैं हिमालय बना था खड़ा वहीं पर,
मुझसे बिछड़ के गंगा चली गई ।

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4 JUL 2019 AT 20:33

वो सारी शरारतें जिन्हें कोई जज ना करे,
कॉपी का वो आखिरी पन्ना इश्क़ है ।

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29 MAY 2019 AT 20:45

मेरे दिल के करोल बाग़ में आयी ही हो ,
तो तुम भी "गफ्फार" हो के जाना ।

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21 APR 2019 AT 21:52

वो तुम्हारे अंतरमन को
छलनी कर सकता है,
अभद्र भाषा की गोलियों से
मगर वो Ak-47 नहीं है...

(Caption में पढ़ें)

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16 APR 2019 AT 1:26

कुछ कहानियाँ हैं जो शुरू होते ही ख़त्म हो जाती हैं,
कुछ ग़ज़लें हैं जिन्हें बहर छोड़ दे तो नज़्म हो जाती हैं ।

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