अनुमापन || Titration
( अनुशीर्षक में पढ़ें )-
लोगों ने मेरा दर्द पढ़ा और वाह कर दिया ।
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ज़िन्दगी को मुफ़लिसी में देख इतना लिख दिया
घर लिखा फुटपाथ को , रोटी को सोना लिख दिया
आशिक़ों की एक आदत है खराब ये क्या कहें
गए जहाँ भी नाम महबूबा का अपना लिख दिया
यूँ तो लिखने को है कितने लफ्ज़ ही इस दुनिया में
लफ्ज़ बस "माँ" लिक्खा, हमने यूँ ज़माना लिख दिया
है ज़रूरी प्यार मुहब्बत काटने को ज़िन्दगी
चाहिए जीने को पहले आबो-दाना लिख दिया
छोड़कर तुम जो गई इतना चलो सह लेते, पर
ये उदासी को मिरा किसने ठिकाना लिख दिया
पूछा उसने क्या लिखोगे बाद मेरे तुम सनम
याद आना औ' लबों का कंपकंपाना लिख दिया
लिखना ही था लिख दिया मैंने "वो फिर आएगी" ,औ'
मुस्कुराकर फिर वही किस्सा पुराना लिख दिया ।
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"ज़रा तस्वीर से तू निकल के सामने आ मेरी महबूबा"
( अनुशीर्षक में पढ़ें )-
ज़िन्दगी से मिरी तुम क्या चली गई
मेरे हक़ की सारी दुआ चली गई
मैं हिमालय बना था खड़ा वहीं पर,
मुझसे बिछड़ के गंगा चली गई ।-
वो सारी शरारतें जिन्हें कोई जज ना करे,
कॉपी का वो आखिरी पन्ना इश्क़ है ।-
मेरे दिल के करोल बाग़ में आयी ही हो ,
तो तुम भी "गफ्फार" हो के जाना ।-
वो तुम्हारे अंतरमन को
छलनी कर सकता है,
अभद्र भाषा की गोलियों से
मगर वो Ak-47 नहीं है...
(Caption में पढ़ें)-
कुछ कहानियाँ हैं जो शुरू होते ही ख़त्म हो जाती हैं,
कुछ ग़ज़लें हैं जिन्हें बहर छोड़ दे तो नज़्म हो जाती हैं ।-