Rahul Kumar   (वो फिर आएगी)
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Joined 11 June 2017


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29 MAR AT 16:50

तुम्हारे बग़ैर अगर
आँखों में नींद आएगी
नींदों में ख़्वाब आएंगे
क्या ख़्वाबों में तुम आओगी

और जो तुम आओगी
हम फिर ख़्वाबों में ख़्वाब देखेंगे
अगर जो ख़्वाब देखेंगे
तो फिर टूट जाएंगे...

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16 OCT 2024 AT 21:20

बिना याद के एक पल भी ना हो
सितम ये कि माथे पे बल भी ना हो

उदासी को ऐसे छुपाना पड़ा
किसी की ख़ुशी में ख़लल भी ना हो ।

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19 JUL 2024 AT 0:12

उल्फ़त में रास्ता कोई बीच का नहीं है
ये वो नहीं कि जिसका हल दोस्ती से निकले

क़ुव्वत हो इतनी वो खुश हो ग़ैर संग तो भी
आँखों से आंसू भी निकले तो खुशी से निकले ।

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14 JAN 2024 AT 23:00

वैसे तो बेहतरी लग रही है
पर बिमारी बड़ी लग रही है

वक़्त उतना भी अच्छा नहीं है
जितनी अच्छी घड़ी लग रही है

रूह हाजिर नहीं है यहां पर
जिस्म से प्रॉक्सी लग रही है

आपके आने से है नयापन
जनवरी जनवरी लग रही है ।

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27 NOV 2023 AT 22:37

आज से दस बीस साल बाद जब हम एक दूसरे से
हजारों किलोमीटर दूर होंगे और हमारे बीच नाम मात्र
का भी कॉन्टेक्ट नहीं रह जाएगा और हमारी दुनियाएं
पूरी तरह से बदल चुकी होंगी , हम दोनों हो चुके होंगे
अपनी अपनी दुनिया में बिजी मगर फिर भी किसी
इक रोज़ मुझे मेरी दुनिया में अचानक तुम्हारी याद
आने पर ठीक उसी समय जब तुम्हें तुम्हारी दुनिया में हिचकी आने लगेगी तब
शायद मैं समझ पाऊंगा हमारे बीच का क्वांटम एंटैंगलमेंट और सबको बताउंगा
कि "हिचकी" दरअसल प्रेम की दुनिया में क्वांटम एंटैंगलमेंट का उदाहरण है...

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11 JUL 2023 AT 20:26

फ़क़त ये सोचता हूँ मेरे अंदर क्या बचेगा फिर
अगर तेरी अज़िय्यत से कभी बाहर निकल आया

मैं तो इस तौर तन्हा हूं कि मेरी बात सुनकर के
मिरे घर की दर-ओ-दीवार से इक सर निकल आया ।

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6 JUL 2023 AT 19:32

जो परिंदा है फ़क़त उसका तो घर जाएगा
पेड़ कट जाए अगर तो, वो तो मर जाएगा ।

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2 JUL 2023 AT 18:54

देख तो लेता मैं सूरज की ये परछाई फिर
पर चली जाती जो इन आंखों से बीनाई फिर

इस अदालत की शुरुआत सजा से होती है
बाद होती है यहां इश्क़ की सुनवाई फिर ।

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18 JUN 2023 AT 22:32

हजारों कोशिशें की फिर भी कोई हल नहीं निकला
कि मीठा छोड़ो मेरे सब्र का तो फल नही निकला

कि इस हद तक मिरी उसके दर-ए-दिल में मनाही थी
मिरी मिन्नत से दर तो टूटा पर साँकल नहीं निकला ।

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27 APR 2023 AT 18:23

जिस किसी से मिले उसे बदले
वो नदी जैसे रास्ते बदले

ज़ब्त ऐसे हैं एक दूजे में
गर तुझे बदले तो मुझे बदले

चंद मिनटों की ही सहूलत थी
बस परिंदों के पिंजरे बदले

वो कि जिसका बदल न था कोई
वो कि जिससे लिए गए बदले

सब बदलते हैं अपनी मर्ज़ी से
कौन क्यूं किसको किसलिए बदले ।

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