Rahul Kaushik   (Arc Kay)
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Joined 5 March 2019


Joined 5 March 2019
14 JAN 2024 AT 21:35

कभी रोता है, तड़पता है, रुसवाई देता है।
जब महकता है, धड़कता है, सुनाई देता है,
ये दिल मेरा, इस तरह, मेरे इश्क की गवाही देता है,
हर चेहरे में, चेहरा उसका दिखाई देता है।।

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10 AUG 2022 AT 22:41

कुछ रिश्ते इस कदर, बेकाबू हो जाते हैं,
चोट उन्हें लगती है, दर्द हमें आज़माते है।।

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8 AUG 2022 AT 21:13

दर्द जिंदगी में, बोहोत कुछ हैं,
जो रुक रुक कर, मचलते रहते हैं।
कभी बातों से, निकलते रहते हैं,
कभी आंखों से, फिसलते रहते है।।

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3 JUN 2022 AT 22:08

सुन तेरे ऊपर, नई किताब लिख रहा हूॅं,
मदहोशी के आलम में, दिल की बात लिख रहा हूॅं।

ढूॅंढ ली है मैंने‌ वो जगह, जहाॅं तेरा डर किसी को नहीं,
मयखाने में‌ बैठ कर, जिंदगी, तेरी औकात लिख रहा हूॅं।।

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2 JUN 2022 AT 19:44

एक बात, एक अरसे तक मुझे सताती रही,
कुछ जलने की बू, हर वक्त कहीं से आती रही।

नामो निशान नहीं थे, कहीं पर भी शमा दहकने के,
कुछ अपनों की नज़र, इस कदर, नज़र मुझे लगाती रही।।

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31 MAY 2022 AT 12:07

साथ तेरे जिस्म के, करना बस एक गुनाह चाहता हूॅं,
तेरे कांधे पर रख सिर, तेरी बाहों में पनाह चाहता हूॅं।

एक आसरा दिखा, चलने मुद्दतों के बाद किसी तरह,
तेरी जुल्फों में समाकर, करना इस सफ़र को फ़ना चाहता हूॅं।।

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13 APR 2022 AT 12:45

बस ख्यालों में नहीं पुलाव केसरी, सेक रहा हूॅं मैं,
किसी मकसद से घुटने, ज़मी पर टेक रहा हूॅं मैं।
नाप रहा हूॅं, मुझसे तुझ तक कितनी हैं दूरियाॅं,
ऐ मंज़िल, बोहोत गौर से तुझे देख रहा हूॅं मैं।।

दूंगा सब ठोकरों को, एक दिन मैं जवाब करारे,
पत्थर मेरे सफ़र के, बेअसर दिखेंगे बेचारे।
जब लगाउंगा मैं छलांग, अपनी उम्मीदों के कदम से,
शर्मा कर कहीं छिप जाएंगी, मेरे रास्तों की दरारें।।

निकाल उलझनों के बोझ,‌ अपने ज़हन से फेंक रहा हूॅं मैं,
यूॅंहीं नहीं घुटने, ज़मी पर टेक रहा हूॅं मैं।
करने को हूॅं मैं एलान, ज़िद से भरी अपनी दौड़ की,
ऐ मंज़िल, बोहोत गौर से तुझे देख रहा हूॅं मैं।।

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12 FEB 2022 AT 19:43

साथ तेरे जिस्म के, करना बस एक गुनाह चाहता हूॅं,
तेरे कांधे पर रख सिर, तेरी बाहों में पनाह चाहता हूॅं।।
एक आसरा दिखा, अरसों तक चलने के बाद किसी तरह,
तेरी ज़ुल्फों में बिखरकर, करना इस सफ़र को फ़ना चाहता हूॅं।।— % &

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12 FEB 2022 AT 14:43

हर मिज़ाज के, अल्फाजों के पास नहीं हैं जवाब,
समझना है मुझे, तो पड़ेगा तुम्हें यही अंदाज़ चुनना।
गुफ्तगू हाल ए दिल की, सिर्फ बातों से नहीं होती है जनाब,
कभी बाहों में भर, चुपचाप मेरी धड़कने सुनना।।— % &

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3 NOV 2021 AT 18:24

यूॅं फ़कत इज़हार ए मोहब्बत ले आया हूॅं,
उसकी हिचकिचाहट से, उसकी हाॅं का दस्तखत ले आया हूॅं।।

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