RAHUL KATARIA   (RahulDiDiary)
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Ek musafir hoon...bss zindagi ka safar krne aya hoon....
Inst:- @myselfkataria
Joined 15 April 2020


Ek musafir hoon...bss zindagi ka safar krne aya hoon....
Inst:- @myselfkataria
Joined 15 April 2020
19 AUG 2022 AT 23:22

मुझे डर है तुमसे ये मेरा इश्क ज्यादा ना हो जाए,
मैं तेरा श्याम ना हो जाऊं तू मेरी राधा ना हो जाए,

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23 JUL 2022 AT 11:05

Saawan ki barish main khud ko kuch iss kadar bheega diya...

Humne barish ko tum samjh kar apne galey sey laga liya...

Ab kiss kiss sey chupaun main raaz apni mohabbat k...

Inn barish ki boondon ney jakar yeh kissa ghar ghar main bata diya .....

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9 MAR 2022 AT 20:34

खो गया है वो जो पाया नहीं अभी तक,
शाम- ए-जिन्दगी डूब रही है और वो आया नहीं अभी तक,

मेरी आंखों से छलक रहा है ये लहू कैसा,
हाल ए दिल मैंने तो सुनाया नहीं अभी तक,

ये आईने में ना जाने कौन बैठा है कब से,
मुझे मुझसे किसी ने मिलाया नहीं अभी तक,

तेरे नाम से होती है दिल में आज भी हलचल,
जानी इस दिल ने तुझे भूलाया नहीं अभी तक,

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3 MAR 2022 AT 21:25

जो मिल भी गया नया एक हमसफर तो क्या होगा,
एक ही समंदर के दो अलग किनारे होंगे,
किसी और की बाहों में रह कर भी तुम मेरे ही रहोगे,
किसी और की बाहों में रह कर भी हम तुम्हारे होंगे

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3 MAR 2022 AT 17:52

मुझको दिल से निकाल देना,
तेरे लिए आसान होगा ना ?
खुद ही निकल जाऊं सोचता हूं,
तुझ पर एहसान होगा ना ?
हां मैं हार गया तुझको ज़माने से शायद,
इस जीत से तू भी तो कभी हैरान होगा ना ?
सोचता हूं कर लूं छुप कर ज़माने से तुमसे मिलने की खता,
तू मेरे लिए मगर अब अंजान होगा ना ?
तुझको इजाज़त है मेरे इश्क से रिहा होने की,
मेरी मोहब्बत से तू भी तो परेशान होगा ना ?

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14 DEC 2021 AT 9:20

भीगते बालों से टपकती बूंदों ने हमें बताया है,
तू आज पानी में नहीं किसी के इश्क में नहा कर आया है

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2 NOV 2021 AT 17:27

मंज़िल तलाशते हैं लोग
या मंजिले ढूंढ़ती हैं राही
सफर में जीत मगर वक्त की होती है

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31 OCT 2021 AT 9:40

हो दर्द में भी तसल्ली दिल को
बस इतना सा रेहम हो,
खुदा करे जिसे ज़िन्दगी समझ रहे हैं लोग
वो महज एक बेहम हो,

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22 OCT 2021 AT 18:22

जो ठान चुका है दूर जाने की
उसे मनाया क्यों जाए,
जो समझे ना कीमत आंसुओं की
अश्क उसके लिए बहाया क्यों जाए,
बेवफ़ाई तो खुद की परछाई भी कर
जाति है अंधेरे में अक्सर,
इलज़्म बेवफ़ाई का गैरों पर लगाया क्यों जाए,
मेरा हाल अब मुझ तक ही रहे तो अच्छा है,
वो तो जा चुका, वो कौन होता है, उसे बताया क्यों जाए,

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9 OCT 2021 AT 15:26

अंदर से टूटे हुए कुछ इंसानों में से हूं मै,
खुद से ही रूठे हुए कुछ इंसानों में से हूं मै,

जो घिर के फिर ना बन सके कभी
उजड़ी बस्ती के ऐसे टूटे कुछ मकानों में से हूं मैं,

घाटे में रही ज़िन्दगी वफ़ा का कारोबार करके भी
जैसे दंगों में लूटी हुई कुछ दुकानों में से हूं मैं,

कभी कभी तो भूल जाते हैं ये लोग अक्सर
के इन्हीं की भीड़ के ही कुछ इंसानों में से हूं मैं,

लुटा चुके हैं दोनों हाथों से दुनिया अपनी
बर्बाद मोहब्बत के ऐसे कुछ दीवानों में से हूं मैं,

खुद की ही नज़र में घट गई है कीमत ऐसे
जैसे कबाड़ के पुराने टूटे कुछ सामानों में से हूं मै

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