" पैरो की चांदी की कड़ी बनी ,,, ज़िंदगी की लड़ी "
" ज़िंदगी की कड़ी टूट गयी थी तब ,
वृद्धा के पैरो मे चांदी जड़ी थी जब ,,,
ख़री चांदी को 75 वर्ष की उम्र मे,
कैसी ये अपनों की मनहूसियत भरी नज़र लगी ,
पोते और नातिन ने मिलकर साजिश रची
सहज की दादी- नानी के बदसूरत समझकर
आसानी से पैर के पंजे काट दिये ,,,
नंघी कुल्हाड़ी को बेशर्मी से साँझ के अंधेरे मे छुपा साक्ष्य दबा दिए "-
"OsHo सुमार्ग "
" गुरु "
" चित्त को अंत:करण से,
झांक कर सहेजना,,,
वहीं मिलेंगे गुरुवर् ,,,
उसे ही रमणीक मार्ग बनाना "-
" मालवी केण "
" खेते से अई के नवली लाड़ी ,,,
किच्च्चड़ मे खेड्या पग ना,
जोरर-जोरर ती रगड़ने लागी ,,,
सासु ने यूँ की ,,,
बेटा , आटा के गलवा तो दे ,
सिदी-सामी रोटीना ,,,
युंज अई जाय गी "-
" जीत पर अपार नाज़ हो ,,,
मेहनत का घुलनशील उसमे संस्कार हो ,,,
क्यूंकि
जीत जहां अहंकार की भांग घोल पी ले ,
वह जीत मद् मे घुली बेडगर भूली-भटकी जान पढ़ती है "-
" THE relation between a LAW INTERPRETER and SECULARiSM "
" One who interpret law ,,,
must to follow the principal of "natural justice" to serve one and all and its duty to define the concept of equality in terms of every aspect of life whatever socially, politically, mentally and spiritually ...
And himself has no particular religion to follow other than " SECULARiSM "
--Rahul Katare
-
" उसने तो कहा था , उसे रोटी बनानी आती हे ,,,
लेकिन
वह तो सुबह भोर मे ही face scrubber लगाती हे "-
" न्याय अगर कलम से मिलता तो ,इतिहास तलवारों से नही लिखे जाते " ( fb टिपण्णी)
मेरा उत्तर :
अतीत के इतिहास मे democracy(लोकतंत्र) नाम की विचारधारा नही थी , सिर्फ क्षेत्रवाद और वंशवाद था , इसलिए कलम सिर्फ कवितायेँ और राजाओं का शौर्य बढ़ाने के लिये राजाओं के आदेशो के अनुसार इतिहास रचा गढ़ा जाता रहा हे ,,,
ये पूरे विश्व भर के राजाओं की सिर्फ इतनी सी ख्याती थी , सच कुछ और था , लेकिन आँखे मुन्दनी पढ़ती हे 😊 क्यंकि समय बलवान तो हे ही , लेकिन गतिशील भी उतना ही 😬 बहुत जल्दी तख्ता पलट भी कर देता हे ,,,
और एक दिन वह आता हे जब भारतीय संविधान लागु होता हे , समानता का भाव जाग्रत होता हे ,,,
केसरिया सूरज हस्तिनापुर मे लाल सा जलता रहता हे , चंदा हमेशा की तरह मुस्कुराता हे , शीतलता बिखेर कर रहता हे 😊।-
" न्याय अगर कलम से मिलता तो ,इतिहास तलवारों से नही लिखे जाते " ( fb टिपण्णी)
मेरा उत्तर :
अतीत के इतिहास मे democracy(लोकतंत्र) नाम की विचारधारा नही थी , सिर्फ क्षेत्रवाद और वंशवाद था , इसलिए कलम सिर्फ कवितायेँ और राजाओं का शौर्य बढ़ाने के लिये राजाओं के आदेशो के अनुसार इतिहास रचा गढ़ा जाता रहा हे ,,,
ये पूरे विश्व भर के राजाओं की सिर्फ इतनी सी ख्याती थी , सच कुछ और था , लेकिन आँखे मुन्दनी पढ़ती हे 😊 क्यंकि समय बलवान तो हे ही , लेकिन गतिशील भी उतना ही 😬 बहुत जल्दी तख्ता पलट भी कर देता हे ,,,
और एक दिन वह आता हे जब भारतीय संविधान लागु होता हे , समानता का भाव जाग्रत होता हे ,,,
केसरिया सूरज हस्तिनापुर मे लाल सा जलता रहता हे , चंदा हमेशा की तरह मुस्कुराता हे , शीतलता बिखेर कर रहता हे 😊।-