चित्र बड़ा विचित्र है ये लोगो का कैसा दोहरा चरित्र है
पता ही नही चलता कौन दुश्मन और कौन मित्र है
किसी की कर्कश तो किसी की मधुर वाणी है
और कही खारा तो कही मीठा पानी है
अभी बस अभी बहर माप कर आया हू
कही कुछ गलत तो कही कुछ सही पाया हू
कुछ विचित्र से चित्र देखे न पास खड़े कोई मित्र देखे
कुछ पाँव मे छाले और कुछ मे जूते निराले देखे
दिन को कोई रात तो कोई रात को दिन बना लेता है
जिसे जो समझ आता है उसे वो अपना लेता है
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