"सबक_ऐ_जिंदगी"
भगवान......
खींच दी जो आज तूने,
रिश्तो में ऐसी खाई!
चाहना भी चाहूंगा जो ...गर,
दिल से ना मिटेगी खाई!
अजन्मी किस्मत की तराज़ू के,
डगमगाते पलडो पे!
गुजरते जीवन के अंधेरे दिनो के
उन काले पन्नो पे!
ना मिटने वाली वो खाई,
जो आज आई!
ना मिटने वाली वो खाई,
जो आज आई!
गर्व हुआ बहुत तुम्हें जब रिश्तो की,
समझदारी थी आई!
रिश्तो को बचाने की वो अधूरी,
लाख कोशिशें अपनाई!
ना कर सके निर्मोही रिश्ता_ऐ_मिलन,
चक्रीय संसार में!
खींच गई रिश्तो में वो खाई,
किस्मत_ऐ_बाजार में!
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