सुबह किरणों के साथ पहली याद आती है जिसकी
तुम ही हो.......🌝-
भावनाओं को अल्फाज मिलता.....✍
रुकेंगे नहीं झुकेंगे नहीं
पग जो निकले हैं बदलाव को,
किसी के रोकने से रुकेंगे नहीं
हो रास्ता कितना भी दुर्गम,
या हो कांटों से भरा
झुकेंगे नहीं रुकेंगे नहीं
पग जो निकले हैं बदलाव को
किसी के रोकने से थमेगे नहीं-
""गुमनाम शहर""
बदला नहीं कुछ भी यहां
वही गलियां वही किनारे
शोर मचाते दौड़ते वाहन
टुकुर टुकुर सी देखती निगाहें
आशाओं से भरी ओझल नगरी
नयनों में संजोए सपने हजार
पथिक है आते यहां जाते यहां
मीठी - फीकी सी मुस्कान लिए
अरमानों को दबाए हाथों में सामान लिए
होता है खेल शुरू वही
शुरू से लेकर अंत यही
चमकता है कोई यहां,
बिखरता है कोई यहां,
कईयों का साहस छोड़े साथ,
बहुतों की कहानी हुई समाप्त
यादों को संजोए अपने हृदय में
शहर अपनी रवानगी मैं बहता रहा
फिजा वही..घटा वही.. किनारे वही
बदले हैं बस चेहरे यहां
"दौर - ए - जिंदगी" वही, लम्हे वही
कहानी वही किस्से वही......-
हार जाता है इंसान
खामोश रहते..सहते सहते..
रिश्ते निभाते निभाते
सफाई देते देते
अपनों को मनाते मनाते-
आज नहीं तो कल बदलेगी
""किस्मत""
ही तो है साहब
यह भी अपना रंग बदलेगी-
"सबक_ऐ_जिंदगी"
भगवान......
खींच दी जो आज तूने,
रिश्तो में ऐसी खाई!
चाहना भी चाहूंगा जो ...गर,
दिल से ना मिटेगी खाई!
अजन्मी किस्मत की तराज़ू के,
डगमगाते पलडो पे!
गुजरते जीवन के अंधेरे दिनो के
उन काले पन्नो पे!
ना मिटने वाली वो खाई,
जो आज आई!
ना मिटने वाली वो खाई,
जो आज आई!
गर्व हुआ बहुत तुम्हें जब रिश्तो की,
समझदारी थी आई!
रिश्तो को बचाने की वो अधूरी,
लाख कोशिशें अपनाई!
ना कर सके निर्मोही रिश्ता_ऐ_मिलन,
चक्रीय संसार में!
खींच गई रिश्तो में वो खाई,
किस्मत_ऐ_बाजार में!-
सपने को जीने के लिए एक सपना चुना
साकार करने के लिए एक एक धागा बुना
धागों की रंगतो को फीका ना पढ़ने दिया
था जो भी संभव उन धागों में वह रंग दिया
रंगों के ही उस रंग में था... मैं भी रंग गया
सपनों के ही अपनों में था मैं घुल मिल गया
रंगों में यह बेजान-नीयत कहां से आई
की कोशिश बहुत.. ना कर पाई भरपाई
हुई थी कमी कहां, वक्त ने ना समझने दिया
अनजाने में ही सही पर जख्म गहरा दिया-