लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
~ मुनव्वर राणा-
किस-किसको जाके बोलूँ , बताऊँ कि मैं भी हूँ
कैसे मैं सबके ध्यान में लाऊँ कि मैं भी हूँ
~राजेश रेड्डी-
अपने सभी गिले बजा पर है यही कि दिलरुबा
मेरा तिरा मोआ'मला इश्क़ के बस का था नहीं
~ज़ौन एलिया
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गुज़र तो जाएगी तेरे बग़ैर भी लेकिन
बहुत उदास बहुत बे-क़रार गुज़रेगी-
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
~ नूर-
फ़स्ल-ए-बहार आई है होली के रूप में
सोला-सिंघार लाई है होली के रूप में
~ साग़र निज़ामी-
जला दी गई लाश क़ानून की
अंधेरे में इंसाफ़ रोशन हुआ
~Rajesh Reddy-
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
~ मीर तक़ी मीर-
कुछ तुम कहो, कुछ मैं कहूंगा ।
इसी तरह एक कारवां बनता चला जायेगा .!!
सुन रहे हो न ....-
सगी बहनों का रिश्ता है जो उर्दू और हिंदी में,
कहीं दुनिया के दो जिंदा जुबानों में नहीं मिलता।-