क्या करें, क्या न करें समझ में आ नहीं रहा क्या कहें, क्या न कहें समझ में आ नहीं रहा बैठे है क्रोध की नाव पर बैठे रहे की उतर जाए समझ में आ नहीं रहा उदास है बहुत जिन्दगी में उदासी छोड़कर मुस्कराये समझ में आ नहीं रहा चलना चाहते है अपनों के साथ साथ चलें या अकेले ही चलें समझ में आ नहीं रहा उम्मीद लगाना चाहते है सभी से उम्मीद लगाए या छोड़े समझ में आ नहीं रहा समझाना चाहते है अपनों को अपनों को समझाये या खुद समझे समझ में आ नहीं रहा छोड़ दिया हंसना मुस्कुराना कभी मन किया तो हंस लिया करें समझ में बस यहीं आ रहा।।
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इश्क़ की आखरी नसल है हम गुमनाम
आने वाली पीढ़ी को सिर्फ जिस्म की जरूरत होगी
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गम बहुत है मगर खुलासा कौन करें,
मुस्कुरा देते है यू ही तमाशा कौन करें-
हमें सब कुछ गंवाना अच्छा नहीं लगता
अब तो ग़म भी बताना अच्छा नहीं लगता
जो अब भी हंसते हैं मेरी मुस्काराहटों पर
उन यारों को रुलाना अच्छा नहीं लगता
वो चले गए हाथ छोड़ कर हमारे रस्तों से
अब उनके नाम बताना अच्छा नहीं लगता
हम तो बदनाम थे अपनी आवारगी में पहले से
तुम्हारा ये पुराना इल्ज़ाम अच्छा नहीं लगता
ख़त्म हो ही गया रिश्ता दरम्यां मोहब्बतों का
फिर कहानी के किरदार बताना अच्छा नहीं लगता
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उन्हीं किनारों पर बैठा रहता हूँ मैं...
पर अब अकेले...!!
उन्हीं रास्तों से गुज़र जाता हूँ मैं...
पर अब उनके बगैर...!!
उनका ख़याल आता है मुझे...
पर अब एकतरफ़ा...!!
दुनियाँ साथ नहीं देती सुना था...
पर अब अकेला हो गया हूँ...!!
पहले कोई नहीं था... तब भी मैं था...
वो आकर चले गए... अब भी मैं हूँ...!!
मैं भीड़ में ग़लत इंसान को चुन बैठा...
ग़लती मेरी है... सिर्फ़ मेरी...!!
मैं बदलना चाहता हूँ...
अपनीं ज़िद के दम पर...
देखते हैं... क्या मंजूर है... मेरे परवरदिगार को...!!-
हार रहा हुँ खुद को रोज़
क्या करू, क्या नहीं
कुछ समझ नहीं आ रहा हैं
मै मरू या जीउ समझ नहीं आ रहा।-