मैं बुझ भी जाऊं तुम अपनी जगमगाहट मत छोड़ना..
शुभ दीपावली-
शांत दिखने वाले मनुष्यों के भीतर
एक युद्ध हुआ होता है
जिसे वे जीत चुके होते हैं
~ राहुल अभुआ 'ज़फर'
(किताब - मैं शून्य ही सही)-
सड़कों पर चीख-चीखकर हंगामा करने वाले देर-सबेर 'सड़क' पर ही आ जाते हैं
- राहुल अभुआ 'ज़फर'-
तुम मुस्कुराया करो
जब मुस्काते हो तो दिखता है तुममें
तुम्हारा वो बचपन
जो तुम छुपाये फिरते हो ज़माने से,
अकड़ूपन के पीछे का वो नटखट शैतान बच्चा
जिसके बारे में माँ ने मुझे बताया था।
मुस्कुराते हो तो एक शिशु लगते हो,
जैसे कोई बच्चा पहली बार रेल यात्रा पर निकला हो
और दोनों तरफ से गुज़रती पहाड़ियों
को देख एक सहज अनुभव कर रहा हो,
आंखों की शांति और चेहरे की मुस्कान
मुझे भी उस लंबी रेल यात्रा का आभास करवा जाती है।-
इन वादियों का चुपके से यूं मुझसे कहना
कि हसीन नजारें और भी होंगे लेकिन
इन फिज़ाओं की महक-सा हसीन कुछ भी नहीं
- राहुल अभुआ 'ज़फर' 🌻-
रात की चाहत होती है माथे का चुम्बन
जो हल्की आंच की तरह जलते बदन का सहारा हो सारी रात,
उजले दिन को चाहिए होती है छुहन हाथों की
जैसे पानी पर लिखावट की तासीर खो जाती है
वैसे ही खो जाते हैं उजले दिन, महकती शामें और सर्द रातें
जो नहीं खोते वो हैं -
माथे का चुम्बन, हाथों की गर्म छुहन और रातों को जागकर देखे सितारे-
तुम्हे सोने-हीरों का लालच न होता
अगर तुमने देखी होती पत्तियों पर बैठी ओस की वो बूँदें
वो पेड़ों के बीच से ढलते सूरज की जो किरणें आती हैं न
बस प्यार वहीं से उपजता है,
ये आशियाना संजो पाना
प्रकृति का मेरे चुप अल्फ़ाज़ों से बातें करना
मौसम की हल्की-सी ठण्डक के साथ वो प्यार वाले मौसम में जो एक अजीब-सी महक होती है ना,
जब आसपास का सबकुछ खुशनुमा लगने लगता है
और फूलों से अलग हुई वो पत्तियां गिरने के बाद भी खिलने लगें
बस प्यार वहीं से उपजता है..-