वो तो उम्र ने हाथ बांध रखें है।
वरना शोक हमें भी पहाड़ों पर गुमने का था।-
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मैं आ रहा हूं इन्तजार करना होंठों पर मुस्कान दिल में प्यार रखना।
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देखी मेने दुनिया पर मां जैसा कोई नहीं मिला
मां हाथों से खाना खिलाती है आज भी मुझे
मां के सामने में कभी बडा नहीं हुआ ।
मैं खुदा कि क्या पूजा करूं
मां जैसा खुदा कभी पैदा ही नहीं हुआ।
मेरी उम्र मेरी मां को लग जाएं
मेरी मां जैसी किमती और नहीं है मेरे पास खुदा
Rahish कितना भी कर ले पर तेरा कर्ज नहीं तार सकता मां
तू ही मेरा अस्तित्व तू ही मेरी पहचान है मां।-
आज नाकाम है, कल कामयाब भी होंगे।
खुदा ने जिस्म दिया है, तो मकसद भी जरूर लिखा होगा।
हुक्म बापू का , मां के सिर पर हिरो का ताज होगा
और नाम रहीश है, जनाब तुम्हें बुढ़ापे तक तबाही देगा।
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बातें ज्यादा करना भी अच्छा नहीं होता
रिश्ते नाज़ुक होते हैं, ज्यादा खिंचना भी अच्छा नहीं होता
जो मजजे मासुमियत है वो चालाकियों में कहा
मैं खामोशियों में रहकर अपनों कि तलाश में रहता हूं
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लिखने में शब्दों नहीं आग लिखता हूं बातें थोड़ी समझदारी कि लिखता हूं
उम्र चाहे, छोटी हो ,पर लिखने में रहीश अपने जमिर को भी चुनौती देता हैं
अगर दिल खुश है तो लिखने ✍️में गुलजार हूं मैं
दुखों के सागरों में डूबा तो रहीश लिखने में ✍️ पंकज उदास हूं मै
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मुझे मासुमियत पसंद है मासूम रहा कर
खामोशियां पसंद है खामोश रहा कर
रहीश प्यार का व्यापारी है मोहतरमा
बातें थोड़ी सोच समझ कर बोला करो।-
लिखने का क्या है, दर्द जो सहता है पता तो उसे होता है
वो इन्सान ग़लत नहीं होता जो ग़लती होने पर सिर झुकाता है-
मेने जन्नत तो नहीं पर मां को देखा है ।
मेरे उदास होने पर बस रोती मां को देखा है।
खुद से ज्यादा फ़िक्र एक मां को अपने बच्चे कि होती है
मैं पत्थरों से क्यों दुआ करूं मेने अपनी मां में भी खुदा देखा है-