किसी की आख पुरनम है
मुहब्बत हो गई होगी
जुवा किस्सा -ए-गम है
मुहब्बत हो गई होगी
कभी हसना कभी रोना ,कभी हस-हस के रो देना
अजब दिल का ये आलम है
मुहब्बत हो गई होगी
खुशी का हद से बढ जाना
अब एक बेकरारी है
ना गम होना भी एक गम है
मुहब्बत हो गई होगी
किसी को सामने पा कर
किसी के शुर्क होठो पर अनोखा सा तबस्सुम है
मुहब्बत हो गई होगी
जहा वीरान राहे थी,जहा हैरान आखे थी
वहा फूलो का मौसम है
मुहब्बत हो गई होगी
हर एक सिलवट पर विस्तर की, किसी का नाम लिखा है
दिये की लौ भी मधम है
मुहब्बत हो गई होगी 🫀🌍
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