मै जन्नत के पत्ते पढ़ती है
कभी गुजरे मराहिल पढती हू
बो हर बक्त याद आता है
जब मै novel पढती हू
बो है शैदाई जौन का,उस्ताद नुसरत का दिवाना है
क्या करके अधुरा मै उसको
अब ला-हासिल पढती हू
मकतूल की कोई फिक्र नही
और अफसाना कातिल पढती हू
करके उसकी आंख समन्दर अब मै साहिल पढती हू
बो कहता है
मै पढ कर भूल गया जो मै
पीर-ए-कामिल पढती हू
बो उसमे हकीकत तकता है
मै समझ कर novel पढती हू
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कुछ लम्हे बक्त से चुराए है,फिर शाम संग बिताने का मन है
तुम इस दफा नये लिबास मे आना,मुझे गलतिया दोहराने का मन है
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एक सबब मरने का, एक तलब जीने की
चान्द पुखराज का,एक रात पसमीने की...-
किसी की आख पुरनम है
मुहब्बत हो गई होगी
जुवा किस्सा -ए-गम है
मुहब्बत हो गई होगी
कभी हसना कभी रोना ,कभी हस-हस के रो देना
अजब दिल का ये आलम है
मुहब्बत हो गई होगी
खुशी का हद से बढ जाना
अब एक बेकरारी है
ना गम होना भी एक गम है
मुहब्बत हो गई होगी
किसी को सामने पा कर
किसी के शुर्क होठो पर अनोखा सा तबस्सुम है
मुहब्बत हो गई होगी
जहा वीरान राहे थी,जहा हैरान आखे थी
वहा फूलो का मौसम है
मुहब्बत हो गई होगी
हर एक सिलवट पर विस्तर की, किसी का नाम लिखा है
दिये की लौ भी मधम है
मुहब्बत हो गई होगी 🫀🌍
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किस दसत -ए-जहान को आबाद किए बैठे है
आरजू-ए-यार को हम खाक किए बैठे है ,
ख्वाब के तार से इस ख्वाहिश को रफू करते
दामन-ए-दिल को अब चाह किए बैठे है,
काश बो आए और जलाए यहा चराग ,
दिल के दरबार को हम ताख किए बैठे है..
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तुमने करा न याद कभी भूल कर हमे
हमने तुम्हारी याद मे सब कुछ भुला दिया-
बनाबटी और ख्वार होती जा रही हू
यानी के मै आज कल अखबार होती जा रही हू-
मेरे जहन मे अब भी हर वक्त एक सवाल रहता है
क्या मेरे दिल मे जिसका ख्याल है,उसके दिल मे भी मेरा ख्याल रहता है-