कल ख़ौफ था बिछड़ने का
आज डर नहीं है मौत का
ज़िन्दगी ना कल थी हमारी
और ना आज है हमारी-
मैंने उस से पूछा दफ़अतन बताओ ज़रा
अपनी मोहब्बत को पाने के लिए तुमने क्या किया
उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया
मेरे हिस्से में कुछ आया नहीं इतने हिस्सों में बट गया-
ग़म कैसा मेरे गुज़र जाने का
जब मेंने तुझे कभी समझा ही नहीं
अफसोस ना कर जो तुझको समझे
अब उठ उसको तलाश कर-
कितनी ख़ामोशी है आज चारों तरफ़
अपने ही पेरों की चाप सुनाई देती है
धुआं धुआं है यह कैसा चारों तरफ
दूर अलाओ से निकलती चिंगारी दिखाई देती है
आज बच्चों की चहल-पहल नहीं स्कूल बंद है
तभी दूर से चिड़िया की चहचहाहट सुनाई देती है-
मुबारक बाद क्या दूं मैं सबको नव वर्ष की
एक साल ज़िन्दगी का सबका कम हो गया-
हर तरफ हो ख़ुशियां यह पैग़ाम दे तू सेंटा
दुनिया में हो सुकून यह पैग़ाम दे तू सेंटा
मतभेद मिटें हो भाई चारा यह पैग़ाम दे तू सेंटा
इंसान में हो इंसानियत यह पैग़ाम दे तू सेंटा-
हिदायतें बहुत थीं इनायतें बहुत थीं
मेरे हमदम को मुझसे शिकायतें बहुत थीं-