ग़म कैसा मेरे गुज़र जाने का
जब मेंने तुझे कभी समझा ही नहीं
अफसोस ना कर जो तुझको समझे
अब उठ उसको तलाश कर-
कितनी ख़ामोशी है आज चारों तरफ़
अपने ही पेरों की चाप सुनाई देती है
धुआं धुआं है यह कैसा चारों तरफ
दूर अलाओ से निकलती चिंगारी दिखाई देती है
आज बच्चों की चहल-पहल नहीं स्कूल बंद है
तभी दूर से चिड़िया की चहचहाहट सुनाई देती है-
मुबारक बाद क्या दूं मैं सबको नव वर्ष की
एक साल ज़िन्दगी का सबका कम हो गया-
हर तरफ हो ख़ुशियां यह पैग़ाम दे तू सेंटा
दुनिया में हो सुकून यह पैग़ाम दे तू सेंटा
मतभेद मिटें हो भाई चारा यह पैग़ाम दे तू सेंटा
इंसान में हो इंसानियत यह पैग़ाम दे तू सेंटा-
हिदायतें बहुत थीं इनायतें बहुत थीं
मेरे हमदम को मुझसे शिकायतें बहुत थीं-
मेरी, तेरी, सब की कहानी तो है वो
जहां हाथ छोड़े बचपन, जवानी तो है वो
किसी ने नहीं खाया, बाप बनकर इस जहां में
सुनो बच्चों की हर घड़ी, हर घर की कहानी तो है वो
चल चुरा लाते हैं कुछ लम्हे, माज़ी की पगडंडी से हम
ख़ाक़ उड़ती थी जहां, ज़रों की कहानी तो है वो
आ मिलते हैं फिर उसी मोड़ पर ! चीख़ते हैं सन्नाटे जहां
आवा-जाही की एक अनूठी, रवानी तो है वो-
शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता
सच मुँह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता-