बीत गये दिन, दर्द न बीते
जीवन के पल लगते रीते।
कभी जहां हँसती थी कलियां,
कभी न सो पाती थी गलियाँ।
सोंचा करते, हो बड़े उम्र से
अपने लगते थे हम सभी के।
ममता की छांव में बड़े हो गये,
ऐसे निज पांव पर खड़े हो गये।-
Raghvendra B Saral
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प्रयागराज ,उत्तर प्रदेश
Joined 30 April 2019
17 JUN AT 15:48
16 JUN AT 18:15
मानो हुआ गुनाह, जो देख हँस दिये,
वो भूल गये, जीते हम किसके लिये।
साथ रह उनका हर घड़ी खयाल-
15 JUN AT 23:11
जहाँ में औलाद के खातिर इक मज़बूत शख़्शियत वालिद।
उठे कदम तो रहे साथ, गर लड़खड़ाए, मुझे गिरने न दिया।।-
13 JUN AT 9:09
मुखातिब जिससे
इक नाबीना है।
चाहत की हरारत में
जलती शमां हूँ,
सोंचता छूकर मुझे
कैसा नगीना है।।-
13 JUN AT 0:22
मैं जिंदा हूँ, कौन यहां करे दरयाफ़्त।
सोये लोगों के बीच यही कोफ़्त मुझे।।-
13 JUN AT 0:21
मैं जिंदा हूँ, कौन यहां करे दरयाफ़्त।
सोये लोगों के बीच यही कोफ़्त मुझे।।-
13 JUN AT 0:21
मैं जिंदा हूँ, कौन यहां करे दरयाफ़्त।
सोये लोगों के बीच यही कोफ़्त मुझे।।-
13 JUN AT 0:20
मैं जिंदा हूँ, कौन यहां करे दरयाफ़्त।
सोये लोगों के बीच यही कोफ़्त मुझे।।-
13 JUN AT 0:20
मैं जिंदा हूँ, कौन यहां करे दरयाफ़्त।
सोये लोगों के बीच यही कोफ़्त मुझे।।-