मैं जब जब तेरे नजदीक गया,
ना जाने क्यों मुझसे दूर हुई !
शायद, यह रब की मर्जी ही है,
दूर होकर भी तू मेरी फितूर हुई !!-
मति मारी गई है ममता की,
खाक बात करेगी समता की?
कब तक सोया रहेगा देश~प्रधान
सब जानते क्यों नेतागण अंजान?
जब महिला डॉक्टर से भी होता है अनाचार,
तब कैसी गति है प्रशासन और सुरक्षा की?
शीघ्रतम~कठोरतम दंड का क्यों नहीं विधान,
क्यों बात होती है केवल आत्म मुग्धता की?
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युवाओं के सामने बड़ा विकट है काज,
ज्ञान और जान का महाद्वंद्व है आज!!
" ज्ञान vs जान"
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ना कोई चिंता, ना कोई भय
तुमसे है, तो फिर है !!
ना कोई द्वंद्व, ना कोई संशय
तुमसे है, तो फिर है !!
अब ...
ना कोई मंथन, ना कोई राय
तुमसे है, तो फिर है !!-
छू मंतर होता है सब चिंतन मनन,
जैसे तुम्हें याद करने लगता है मन..!
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नित द्वंद्वों को पन्नों पर लिखता रहा हूं ,
फिर भी मैं वाजिब सा दिखता रहा हूं!
समन्वय का दूसरा नाम ही है जीवन..
इसलिए सिमटता~ पसीजता रहा हूं!!
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डरता हूं अक्सर प्यार में पड़ जाने से,
क्योंकि..
बहुत समर्पण चाहिए उसे निभाने में !!
सिर्फ इजहार और स्वीकार्य काफी नहीं..
उम्र बीत जाती है समझने~समझाने में !!
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झेला है दुःख मैंने हृदय~विदारक,
तेरा निरुत्तर रहना तुझे मुबारक!
तेरी यादों का आज पिंडदान करके,
लो मैं हुआ ... स्वतंत्र कर्ता कारक!!
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वह कहती है उसे काम बहुत है,
मुझे लगता है मेरा नाम बहुत है,,
फ़लसफ़ा...
सपना पूरा करने के लिए,
यह सुबह~शाम बहुत है।-
तुम्हारे बहाने फिर से लिखने लगा हूं,
अरसे बाद अच्छा मैं दिखने लगा हूं।
रोजमर्रा की चीजें अब लगती नयी सी,
भागा भागा था फिरता, अब टिकने लगा हूं।।-