इक तू ही तो है, यूँ मेरा सारा जहाँ।
तू ही है घर मेरा, तू ही है आशियाँ।।
तुझमें साँस मेरी, तू ही ख़्यालों में मेरे बसी।
मेरी नज़रें ढूँढती है, तेरे चेहरे की वो हसी।।
तेरी वो शरारतें, तेरी भोली सी बातें, क्यों मुझसे है तू यूँ ख़फ़ा।
वो भीगी सी रातें, वो तेरी आँखें, तेरी यादें ही हैं बस यहाँ।।
मेरी ये क़िस्मत, है तुझसे जुड़ी हुई।
साँसों में मेरी, तेरी ख़ुशबू बसी हुई।।
तुझमें साँस मेरी, तू ही ख़्यालों में मेरे बसी।
मेरी नज़रें ढूँढती है, तेरे चेहरे की वो हसी।।-
A broken heart
And "MAHADEV'S" child ❤️❤️
क्या खूब वो कहानी थी, कैसा वो अभिमान था।
लक्ष आज़ादी का था, दावँ पे सम्मान था।।
यूँ चूम कर फंदे को वो, शहीद हो चले शान से।
जब पूछा नाम मोहब्बत का, ज़ुबाँ पे हिन्दोस्तान था।।
वहीं था भगत, वहीं था आज़ाद, वहीं भाई अश्फ़ाक भी था।
सब भारत माँ के बच्चे थे, ना हिन्दू कोई ना मुसलमान था।।
ये देश बापू का भी था, ये देश नेताजी का भी था।
माँ को पूजने वालों का, ये अलग जहान था।।
सारे भेद भाव मिटाकर, सब लड़ पड़े आज़ादी को।
ये ज़मीं बस मिट्टी नहीं, यही आन बान शान था।।
वो जमीं बस ज़मीं नहीं थी, वो असली हिन्दोस्तान था।।-
मेरे छोटे होने का, हर फ़ायदा उन्होंने उठाया है।
बचपन में मुझे लड़कियों के कपड़े पहनाकर, छोटी बहन मुझे बनाया है।।
कहते थे कि तुझे तो, कचरे के डिब्बे से उठा कर लाये हैं।
हे राम हे राम कहकर, खूब उन्होंने मुझे चिड़ाया है।।
कभी झुलाते झुलाते बिस्तर से नीचे फेंक दिया, तो कभी पिछवाडे में प्रकार चुभा दिया।
मेरे पहले ब्रेकअप में भी, मेरा खूब मज़ाक़ उड़ाया है।।
हर भाई बहन की तरह, खूब मार पीट की है हमने।
कभी उन्होंने मुझे सताया है, तो कभी मैंने उन्हें सताया है।।
ज़िंदगी में बस, वो ही सच्चे दोस्त मिले हैं मुझे।
माँ बाप का किरदार भी, उन्होंने ही निभाया है।।
वैसे तो लोगों के सर पे, हाथ होता है ख़ुदा का।
मेरे तो सर पे, बस मेरी बहनों का साया है।।
कैसे कहूँ कि, क़िस्मत अच्छी नहीं है यारों।
मेरे हिस्से में तो, मेरी बहनों का प्यार आया है।।
सोच रहा हूँ कैसे समेट लूँ इतने प्यार को, इस छोटी सी कविता में मैं।
क्या कभी कोई, ख़ुदा को बयाँ कर पाया है?
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वो मासूम चेहरा, वो तीखी निगाहें।
तेरी एक झलक में, यूँ हम डूब जायें।।
तेरा वो चहकना, तेरी वो अदाएं।
तेरी हर अदा पे, ये दिल मचल जाये।।
तेरे बालों से हम, यूँ खेलना चाहें।
तेरी वो हसीं हमको, ऐसे रिझाये।।
जहां तुझको देखें, ये वक़्त ठहर जाए।
तू पास रहे तो, ख़ुद को महफ़ूज़ पाएँ।।
तेरे ही ख़यालों में, दिन गुज़र जाए।
तेरी याद हमको, यूँ रातों में सताये।।
तू है दूर इतनी, कि क्या हम बताएँ।
कि हर-पल हम बस, तुझे छूना चाहें।।
तू हो जब परेशान, ये दिल टूट जाए।
तेरी नाराज़गी हमको, चुभती ही जाये।।
क्यों दूर किया हमको, कौन ये बताए?
यूँ टूट चुकें हैं, ये किसको सुनाये?
हैं मजबूर कितने, ये क्या हम बतायें?
तुझसे ये जुदाई, अब सह नहीं पाएँ।।
चलो अब चलें हम, दिल में तुझको बसाए।
हमें भूल गये तुम, ना हम भूल पाएँ।।
वो मासूम चेहरा, वो तीखी निगाहें।।-
ख़ुद की रक्षा करने को, अब तुझे तलवार उठानी होगी।
तुझे ही बनना पड़ेगा कृष्ण, और ख़ुद की लाज बचानी होगी।।
महिषासुर से भरा है जग, और रावण पग-पग घूम रहा।
सब बने हैं मूक दर्शक, और कलियुग मस्ती से झूम रहा।।
तू है काली, तू है राम, ये बात अब तुझे ही बतानी होगी।
ख़ुद की रक्षा करने को, अब तुझे तलवार उठानी होगी।।
क्यों शर्मसार हुआ है जग ये, क्या मानवता सच में मर गई?
क्यों मुँह पर सबकी सेंध लगी है, क्यों भारत माता यूँ डर गई?
चल अब उठ चल हे नारी! तुझे ही अलख जगानी होगी।
ख़ुद की रक्षा करने को, अब तुझे तलवार उठानी होगी।।
आज रो रही है कलम ख़ालिस की, ये काग़ज़ भी है जल चुका।
नारी-शक्ति का ये सूरज, वक़्त से पहले ही है ढल चुका।।
क्यों शक्ति कहा है तुझको, ये बात हर कान को सुनानी होगी।
ख़ुद की रक्षा करने को, अब तुझे तलवार उठानी होगी।।
अब जौहर का समय नहीं, अब ख़िलजी को आँख दिखानी होगी।
ख़ुद की रक्षा करने को, अब तुझे तलवार उठानी होगी।-
वो जो किसी का है एक उम्र से, वो मेरा कैसे होगा?
एक उम्र भर से रात चली है, ना जाने सवेरा कैसे होगा।।
जल कर राख हो चुका होगा, सारा सामान अब तक।
अब तू ही बता ख़ालिस, तेरा गुजर-बसेरा कैसे होगा?
चुप ही रहे उम्रभर, ना पूछा एक-दूजे से कभी?
हाल तो बदहाल है हमारा, ना जाने तेरा कैसे होगा?-
एक सुकूँ सा रहता है, बातों में उसकी ।
काश वो मुझे भर ले, साँसों में उसकी ।।
वो तकिया भी तो, खुशनसीब होगी ।
काश मैं भी होता शामिल, रातों में उसकी ।।
थक कर यूँ, बिखर सा गया है ख़ालिस ।
काश वो समेट ले मुझे, बाहों में उसकी ।।
वो रहा करती है, मेरे दिल में डेरा डाले ।
काश वो बसा ले मुझे, निगाहों में उसकी ।।
उसे देखने के बाद, किसी और को कैसे देखूं।
अब तो डूब चुका हूँ मैं, नशीली आँखों में उसकी।।
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आज फिर से तेरी यादें, मेरे जहन के आगोश हो गई।
चुप के देखा तुझे, और फिर मेरी नजरें मदहोश हो गई।।
सबके सामने जो कभी भी चुप नहीं होते थे, उन्होने भी।
हमें देख नजरें झुकाई, और मुस्कुरा कर खामोश हो गई।।
सारी रात बस आँखों से ही, बातें करते रहे हम खालिस।
अब तो ये जुबान भी तुझे सामने देख, यूँ बेलौस हो गई।।-
हमनें कभी देखा ही नहीं, गांव को शहर होने तक।
उनके ख्यालों में ही डूबे रहे, चार पहर होने तक।।
किसी रोज अगर आओ, तो थोड़ा वक़्त ले आना।
हमें भी देखना है, इस आशियाने को घर होने तक।।
क्या करे खालिस, कि तेरी एक झलक मिल जाये।
सजे हैं आज इतना, बस इक तेरी नज़र होने तक।।
सर पे गिरे पत्थरों का, अब क्या ही हिसाब करें हम।
प्यार किया था हमनें भी, दिल के पत्थर होने तक।।
ये सुना है मैनें, उन्हें उम्मीद है हमारे तबाह होने की।
आज पियेंगे हम, शराब के हर कतरे के जहर होने तक।।-
किसी दिन अपनी खुद की भी कहानी, सुना पाओगे क्या ?
ये जो द्वंद भरा है मन में, कभी सामने ला पाओगे क्या?
ये जो बहुत सी बातें करते हो तुम, रिश्तों की खालिस।
कभी किसी की ज़रूरत में, साथ निभा पाओगे क्या?
इस बार फिर से सारे रिश्ते, खत्म कर आये हो ना तुम?
फिर क्यूँ अकेले हो यहां, किसी को बता पाओगे क्या?
मन में एक तुफान भरा है, फिर भी चुप चाप बैठे हो तुम।
झूठ तो दुनिया सुनाती है, तुम सच बता पाओगे क्या?
इन नाकाब भरे चेहरों के पीछे, देखता कौन है आज कल।
ये जो बाजू में खंजर है तुम्हारे, सबसे छुपा पाओगे क्या?
अब यूँ अफसोस करके, क्या ही फायदा होगा खालिस।
एक उम्र से जो लेके चले हो, वो बोझ हटा पाओगे क्या?-