इक ख्वाहिश कि तिरंगा हर घर में रोज़ लहराया करता,
आज़ादी हर इंसान अपनी ज़िंदगी में रोज़ मनाया करता,
आज़ादी पहनावे की, प्यार की, आज़ादी होती विचार की,
किसी समय कहीं जाने में भी डर ना होता,
बाहर जा रहे हो "मगर" अंधेरे से पहले घर आना......काश उस आज़ादी में ये "मगर" ना होता,
जब हर धर्म हर जात को एक नज़र से देखा जाता,
किसी लड़की का रेप कर उसको सड़क पर अधमरा ना फेंका जाता,
उस आज़ादी में मर्द को भी दर्द का एहसास होता,
मर्दानगी को बचाने वो अकेले किसी कोने में ना रोता,
जहां किसी की 'ना' को ज़ोर-ज़बरदस्ती हां ना बोला जाता,
लड़का-लड़की को एक समान तराज़ू में तोला जाता,
तिरंगा सड़क पर पड़े कागज़ के समान ना होता,
जिस देश में कोई बच्चा भूखा ना सोता,
भारत की आज़ादी को भी जन्मदिन जैसा मनाया जाता,
मेरा आज़ाद भारत ऐसा होता जहां हर घर में तिरंगा लहराया जाता।।
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