मैने लिखना छोड़ दिया
शब्दों की इस बारिश में
कागज वाला छाता लेकर
निकल पडा हूँ मैं पढने
मैंने लिखना छोड़ दिया— % &-
वाचन सृजन नवनीत रवानी
मिलकर सबसे होता हू दिलदार
मैं तो हू बिना नाव का... read more
मुझसे खफा न होना
बिखर जाऊँगा
संग तेरे होने की आहट
जिंदगी देती है— % &-
प्रेम वो नहीं होता जिसमें प्राप्त करने की ललक हो
प्रेम वो है जिसमें अनुभूति की पराकाष्ठा हो— % &-
क्या ही कहें अब इस अदा पर हम
देखूँ जितनी दफा मोहब्बत बढती ही जाय-
नाम हमर राघव अछि जाहि सँ तात्पर्य श्रीराम
बहीन हमर मैथिली छथि जेकरा सँ अछि माथ ललाम
आखर आखर नव खेलाइत छी साहित्य केर कुटिया मे
वाचस्पति केर हम संतति मूल हमर अछि ठाढी ग्राम-
जब जन्म हुआ मेरा तो मेरे रोने पर हंसी थी वो
फिर कभी रोने भी न दिया मुझे
रात रात भर जगकर मुझे सुलाया है उन्होंने
सोयी नहीं है कभी जागता छोड़कर मुझे
बार बार बिस्तर गिला करता गया मैं
हरबार उसने अपनी जगह दे दी मुझे
कितनी ठोकरें खायी है उन्होंने मेरे पैरों से
मगर हरबार प्यार से पुचकारती गयी मुझे
नौ महीने कम थे क्या अपने गर्भ मे रखना
दुनिया में फिर भी आँचल से ढकती गई मुझे
मेरे हर दर्द को खुद मे महसूस करने वाली
कभी अपने दुख के पास फटकने न देती मुझे
काश समझ पाते उस देवी की महिमा को
जिसके आशीर्वाद से सबकुछ मिल जाती है मुझे
जीवन का एकमात्र सच्चा शब्द जो सब बोलता है
माँ के रूप मे हरबार सीखाता है मुझे
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सरहद पर सीना तान खडा वो
अपने कर्तव्य का कर रहा संचार
देश उसके बलिदानों पर ही
मना रहा हर एक त्योहार
उसकी राखी उसकी होली
बैसाखी और हंसी ठिठोली
हलुआ पूरी अनेक मिठाई
पर उसने है क्या सब खायीं
कुछ भी नहीं है मांगता वो
दे देता है अपना सर्वस्व
फिर भी समाज के कुछ दरिन्दे
माँ भारती को कर रहे है नष्ट ।।-
पैरों मे थिरकन आई थी
हाथों ने सीख लिया पकड़ना
आँखें समझ रही राहों को
मन ही मन में हुआ सम्हलना
मगर अवस्थित था बचपन में
जीवन का बस यही सहारा
जन्म दिया है नाम भी दी है
किसी ने थामा हाथ हमारा-
चाहकर भी संग चल न सके हम
हो गया अकेले रहना गवारा
भटकते रहे हर दिल की गलियाँ
किसी ने थामा ये हाथ हमारा-
झुकाकर नजरें अपनी क्या ख्वाब गढ़ती हो
उठाकर देखो तो चेहरा कितने रंग मोहब्बत के खिले हैं-